वाह रे राजनीति का रूप, इसको समझने के लिए बड़ा से बड़ा लैब फेल हो जाएगा। कोई भी वैज्ञानिक
राजनीति के क्षेत्र में किसी भी प्रकार का शोध करने की दशा में आजतक नहीं पहुँच पाया। यह राजनीति
की अपनी बुद्धि प्रबलता ही है जिस पर बड़ा से बड़ा वैज्ञानिक शोध करने का साहस तक नहीं जुटा
पाता। क्योंकि राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं होता न ही राजनीति के क्षेत्र में किसी प्रकार का नियम
अथवा मानक होते हैं। आज के समय में राजनीति विचारों से हटकर इरादों पर निर्भर हो चली है। देश के
बदलते हुए समीकरण अपने आपमें बहुत कुछ कह रहे हैं जिसका पिछले कुछ समय से सियासी सफर
इस बात का गवाह है। गोवा, कर्नाटक, हरियाणा से लेकर महाराष्ट्र तक की राजनीति ने देश की जनता
का बहुत मनोरंजन किया और बहुत कुछ सोचने समझने पर भी विवश किया। जहाँ भाजपा गठबंधन की
सरकार बनाने में अनुभवी साबित होती गई वहीं विपक्ष भाजपा के सामने कहीं भी टिकता हुआ नहीं
दिखाई दिय़ा। बिहार,गोवा,कर्नाटक से लेकर हरियाणा तक भाजपा ने गठबंधन की सरकार बनाकर विपक्ष
को टिकने नहीं दिया लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में ऐसा नहीं हो सका यह एक अचंभित कर देने वाला
दृश्य था। क्योंकि, भाजपा ने शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और मजबूत सरकार बनाने हेतु
जनादेश भी प्राप्त किया। परन्तु कुर्सी की चेष्टा ने दोनों पक्ष को आमने सामने लाकर खड़ा कर दिया।
जिसका दृश्य देश की जनता के सामने है। भाजपा ने दो बार राज्यपाल के सामने सरकार बनाने का दावा
पेश किया परन्तु बहुमत न जुटा पाने के कारण भाजपा सरकार बनाने में असमर्थ रही। जिसके बाद
एन.सी.पी शिवसेना और कांग्रेस ने एकजुट होकर सरकार बनाने का कार्यक्रम शुरू किया जिसमें शरद
पवार की मुख्य रूप से भूमिका प्रबल रही। शरद पवार ही एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होने कांग्रेस को
शिवसेना के साथ जोड़ने का कार्य किया और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र की कुर्सी तक
मुख्य रूप से पहुँचाने में अपनी ताकत का प्रयोग किय़ा। एक समय तो ऐसा आभास हुआ कि इन तीनों
पार्टियों के इरादों को भाजपा ने चकना चूर कर दिया। क्योकि, देवेन्द्र फड़नवीस और अजित पवार ने
क्रमशः मुख्यमंत्री एवं उपमुख्यमंत्री पद की शपथ भी ग्रहण कर ली थी। ऐसा होने के बाद कुछ सियासी
जानकारों के द्वारा ऐसा भी कहा जाने लगा कि शरद पवार ने बड़ा गेम खेल दिया। लेकिन शरद पवार ने
अपने इरादों से तनिक भी समझौता नहीं किया और डटे रहे। और अपने विधायकों को ढ़ूँढ़ने में लग गए
जो भी गायब थे उनको क्रमबद्ध रूप से खोजा गया उसके बाद सबको होटलों में एकत्रित किया गया।
मुंबई से लेकर दिल्ली गुड़गांव तक विधायकों के खोजने का कार्य किया गया जिसमें शरद पवार पूरी तरह
से सफल रहे। महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर शरद पवार ने साबित कर दिया कि महाराष्ट्र की
राजनीतिक धुरी आज भी शरद पवार के ही इर्द-गिर्द घूमती है। जिस प्रकार महाराष्ट्र की राजनीति में
नया भूचाल देखा गया उसका मुख्य बिन्दु शरद पवार ही रहे। इस बार महाराष्ट् की सरकार बनाने का
पूरा श्रेय शरद पवार को ही जाता है। सभी राजनीतिक बिन्दुओं को यदि ध्यान से देखा जाए तो सत्ता की
चाभी शरद पवार के पास ही रहने वाली है। कुर्सी पर भले ही शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे विराजमान हो
रहे हैं लेकिन इस सरकार का रिमोट कंट्रोल शरद पवार के हाथों में ही होगा। क्योंकि, सियासी उठापटक
के बीच शरद पवार बहुत ही मजबूत होकर उभरे हैं। इसका भय भी शिव सेना को कहीं न कहीं सताएगा
क्योंकि अजित पवार ने भाजपा के साथ सरकार बनाने की पहल करके एक बड़ा सियासी दृश्य पहले ही
दिखा दिया जिससे कि शिवसेना पर दबाव बनना स्वाभाविक है। शिवसेना पर यह भय सदैव ही बना
रहेगा कि यदि शरद पवार की बात नहीं मानी तो सरकार कभी भी गिर सकती है और अजित पवार कुछ
विधायकों के साथ भाजपा से गठबंधन करके नई सरकार बना सकते हैं। इसलिए इन सभी घटनाक्रमों के
बाद शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने जो दृश्य महाराष्ट्र की सियासी रहनुमाओं को दिखाया है
उसका भय अब बना ही रहेगा। सियासत का हर खेल सियासी होता है अतः कुछ भी नहीं कहा जा सकता
कि अजित पवार स्वयं भाजपा के पास गए अथवा शरद पवार ने उनको भेजा था परन्तु इस घटना क्रम
का लाभ सीधे-सीधे शरद पवार को प्राप्त हुआ जिससे शरद पवार की सियासी जमीन और मजबूत हुई।
यदि शरद पवार के जीवन काल पर नजर डालें तो शरद पवार ने गोवा के स्वतंत्रता के लिए मार्च 1956
में एक विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया था। यहां से शरदपवार का सियासी सफर आरंभ हुआ। शरद
पवार बारामती से 1967 में पहली बार के लिए महाराष्ट्र विधानसभा में प्रवेश किया साथ ही अविभाजित
कांग्रेस पार्टी का प्रतिनिधित्व यशवंतराव चव्हाण तथा शरद पवार के द्वारा ही महाराष्ट्र में संचालित
किया जाता रहा। पवार ने 1981 में कांग्रेस के प्रेसीडेंसी का पदभार संभाला उन्होंने बारामती संसदीय
निर्वाचन क्षेत्र से 1984 में लोकसभा का चुनाव जीता। 1967 में राज्य विधानसभा चुनाव में वे बारामती
से चुने गए। वसंतराव नाईक निंबालकर के मंत्रिमंडल में उन्हें राज्य मंत्रीमंडल का दर्जा प्राप्त हुआ। उस
वक्त वे 29 वर्ष के थे। 1972 और 1978 के चुनाव में भी वे विजयी हुए। 1978 में वसंतदादा पाटील
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। यशवंतराव चव्हाण के साथ ही वसंतदादा पाटील भी पवार के मार्गदर्शक थे।
18 जुलाई सन 1978 को शरद पवार राज्य के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने एक अलायन्स बनाई। जिसमें
इंदिरा कांग्रेस छोडे हुए 12 विधायक तथा जनता पार्टी भी शामिल थी। उस समय वे सबसे युवा मुख्यमंत्री
थे। लेकिन 1980 में इंदिरा गांधी केन्द्र में सत्ता में आने के बाद विरोधी पक्ष की राज्य सरकारें बरखास्त
की गईं उसमें महाराष्ट्र की पवार सरकार भी बरखास्त हुई। बरखास्ती के बाद हुए विधानसभा चुनाव में
कांग्रेस ने 288 में से 186 सीटें हासिल की और बैरिस्टर ए.आर अंतुले महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री चुने
गए। उस समय शरद पवार विधानसभा के प्रमुख विपक्षी नेता बने। 1991 में शरद पवार ने राज्य में
कांग्रेस के प्रचार की जिम्मेदारी अपने बलबूते संभाली 48 में से 38 सीटें मिली। प्रधानमंत्री के पद के
लिए नरसिंहराव, अर्जुनसिंग और शरद पवार का नाम अखबारों की सुर्खियों में छाया जाने लगा। लेकिन
संसदीय पक्ष ने नरसिंहराव को प्रधानमंत्री पद के लिए चुना। 1987 में शरद पवार ने 9 वर्ष के अंतराल
के बाद राजीव गांधी की उपस्थिति में औरंगाबाद में फिर से कांग्रेस पक्ष में प्रवेश किया। प्रधानमंत्री और
कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने शंकर राव चव्हाण को केन्द्रीय मंत्रीमडल में मंत्री के पद पर नियुक्त
किया और शरद पवार को मुख्यमंत्री का पद दिया। 26 जून 1988 को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में
शरद पवार ने मुख्यमंत्री पद की दूसरी बार शपथ ली। अब कांग्रेस के लिए कुछ ज्यादा चुनौतियां नही
थी। पर बालासाहेब ठाकरे के पक्ष ने भाजपा के साथ गठबंधन किया उन चुनौतियों का सामना करने के
लिए कांग्रेस पार्टी ने पूरी जिम्मेदारी शरद पवार को सौपी। सन् 1999 के जून मध्य में शरद पवार ने
राष्ट्रवादी पार्टी की स्थापना की। 1999 के विधानसभा चुनाव में किसी भी एक पक्ष को बहुमत नहीं
मिला। राष्ट्रवादी पार्टी और कांग्रेस आपस में मिले और विलासराव देशमुख राज्य के मुख्यमंत्री बने।
महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार एक बड़ा नाम है अब देखना यह है कि महाराष्ट्र की सरकार किस
प्रकार चलती है क्योंकि इस सरकार को चलाने की जिम्मेदारी पवार के ही कंधों पर रहेगी। उद्धव ठाकरे
भले ही मुख्यमंत्री के रूप में कुर्सी पर विराजमान रहें परन्तु शरद पवार सरकार पूरी तरह से चलाएंगे।
सबसे खास बात यह होगी की विपक्ष में भारी भरकम विधायकों से लैस भारतीय जनता पार्टी विराजमान
होगी जोकि वर्तमान सरकार पर पूरी तरह से आक्रमक होगी। साथ ही केन्द्र में भी भाजपा की सरकार है
इसलिए महाराष्ट्र में इस सरकार की राह इतनी सरल एवं सुगम नहीं होने वाली।