शिशिर गुप्ता
पिछले दिनों इराक में जो कुछ हुआ, वह भारत के लिए भी गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए।
बेरोजगारी एक दिन सामाजिक असंतोष का ज्वालामुखी भी बन सकती है। इराक में बेरोजगारी को लेकर
आक्रोशित युवा बड़ी तादाद में राजधानी बगदाद और देश के तमाम अन्य शहरों में सड़कों पर उतर आए।
यह सिलसिला कई दिन चलता रहा तो वहां की सरकार के हाथ-पांव फूल गए। घबराहट में उसने हालात
से निपटने के लिए दमनकारी बल प्रयोग किया। नतीजा यह रा कि साठ लोग मारे गए और सैकड़ों
घायल हो गए। इससे पहले अक्टूबर के शुरू में भी इराक में बेरोजगारी के खिलाफ जन-ज्वार उठा था।
तब इससे भी ज्यादा लोग पुलिस की गोलियों से मारे गए थे और हजारों घायल हुए थे।
चुनावों पर असर
इराक में हुए ये विरोध-प्रदर्शन स्वतः स्फूर्त रहे हैं और देशव्यापी भी। ये दोनों पहलू यही बताते हैं कि
वहां के युवाओं में अपनी हालत को लेकर सरकार के खिलाफ किस कदर गुस्सा है। दुनिया के कई और
हिस्सों में भी अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी न मिलना या उससे बाहर किया जाना बड़े पैमाने पर जन-
प्रतिरोध का सबब बन गया है। मसलन, चिली में पिछले दिनों लाखों लोग बेरोजगारी, कम आय,
सेवानिवृत्ति के बाद की आर्थिक असुरक्षा और बढ़ती विषमता के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। दो करोड़
से भी कम आबादी वाले इस देश में दस लाख से ज्यादा लोगों का विरोध-प्रदर्शन में शामिल होना यही
बताता है कि जन-असंतोष कितना व्यापक है। इसे दबाने के लिए इमरजेंसी लगाई गई, पर यह उपाय भी
काम नहीं आया। हार मान कर चिली के राष्ट्रपति सिबेस्टिन पिनेरा को इमरजेंसी हटानी पड़ी। जन-
असंतोष का एक भिन्न ढंग से इजहार हम लातिन अमेरिका के एक अन्य देश अर्जेंटीना में भी देख
सकते हैं, जहां राष्ट्रपति पद से दक्षिणपंथी मौरिसियो मैक्री की विदाई हो गई और मध्य-वाम रुझान के
विपक्षी नेता अलबर्टो फर्नांडीज चुनाव में विजयी हुए।
भारत में भी, महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों में ‘राष्ट्रवाद’ का जादू नहीं चला। नतीजे बताते हैं कि
आर्थिक मसले फिर से देश की राजनीति पर असर डालने लगे हैं। इराक की तरह भारत में भी बेरोजगारी
की भयावह तस्वीर सामने आ रही है। सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) की ताजा
रिपोर्ट बताती है कि देश में बेरोजगारी साढ़े आठ फीसद पर पहुंच गई है। सीएमआईई के इस सर्वे में
ग्रामीण बेरोजगारी 8.3 फीसद दर्ज की गई है, जबकि शहरी बेरोजगारी उससे थोड़ा अधिक, 8.9 फीसद।
यह पूरे देश की औसत स्थिति है। राज्यवार तस्वीर अलग-अलग है। हरियाणा में बेरोजगारी सर्वाधिक है,
जहां चुनाव नतीजे आने से एक दिन पहले तक आत्मविश्वास से लबरेज दिखती रही सत्तारूढ़ पार्टी को
अपना बहुमत खोकर साझा सरकार बनाने के लिए बाध्य होना पड़ा। अगर सिर्फ 22 साल से 29 साल के
युवाओं को लें, तो बेरोजगारी का आंकड़ा 28 प्रतिशत पर पहुंच जाता है।
भारत कोई एक सौ तीस करोड़ जनसंख्या वाला देश है। यहां अगर एक चौथाई से अधिक युवा आबादी
बेरोजगार है तो बेरोजगार युवाओं की तादाद बहुत विशाल हो जाती है। संख्या में इसकी तुलना किसी और
देश के बेरोजगारों से नहीं की जा सकती। भारत की करीब दो तिहाई जनसंख्या 35 साल से कम उम्र
वाली है, जिसका हवाला देकर कुछ वर्षों से अकसर यह कहा जाता रहा है कि भारत दुनिया का सबसे
युवा देश है और यह पहलू आर्थिक दृष्टिकोण से हमें और देशों के मुकाबले ज्यादा संभावनापूर्ण बनाता
है। पर इसका लाभ तो हम तभी उठा सकते हैं जब हमारे युवाओं को काम मिले। वरना बार-बार बताई
जा रही लाभकारी स्थिति एक दिन विस्फोटक स्थिति में भी बदल जा सकती है। बहुत-से लोगों का
मानना है कि अभी की बेरोजगारी का मुख्य कारण नोटबंदी और चटपट-जीएसटी है। इसमें दो राय नहीं
कि ‘क्रांतिकारी कदम’ और ‘इवेंट’ की तरह लाए गए ये दोनों फैसले असंगठित क्षेत्र के लिए विपदा साबित
हुए।
अभी रोज जिस मंदी की चर्चा हो रही है उसके संदर्भ में भी मोदी सरकार के इन दोनों फैसलों का जिक्र
बार-बार होता है। दिसंबर 2017 से दिसंबर 2018 के बीच रोजगार गंवाने के जो आंकड़े दर्ज हुए हैं उनमें
ग्रामीण हिस्सा ज्यादा है। ग्रामीण भारत में देश की दो तिहाई आबादी रहती है, पर रोजगार खोने के
मामले में उसका हिस्सा 84 फीसद है। अब स्त्री-पुरुष के लिहाज से देखें तो 2018 में 88 लाख स्त्रियों ने
आय का साधन खो दिया, जबकि इस विपदा से घिरे पुरुषों की संख्या 22 लाख ही थी। आय से वंचित
होने वाली 88 लाख स्त्रियों में 65 लाख ग्रामीण क्षेत्रों की थीं और 23 लाख शहरों की। इन मोटे आंकड़ों
से अंदाजा लगाया जा सकता है कि असंगठित क्षेत्र में भी सबसे ज्यादा गाज कहां गिरी है और मांग
घटने का जो रोना रोया जा रहा है उसकी जड़ें कहां हैं। खेती तो नोटबंदी के पहले भी बदहाल थी।
किसान बार-बार कह रहे थे कि उनके लिए कुछ किया जाए क्योंकि उनकी उपज का पुसाने लायक दाम
उन्हें नहीं मिल रहा है। लेकिन वह शहरी मध्यवर्ग की आवाज नहीं थी लिहाजा हमारे नीति नियंताओं ने
उस गुहार को अनसुना कर दिया।
बने कारगर रणनीति
बेरोजगारी से निपटने की कारगर रणनीति तभी बनाई जा सकती है जब किसानों, कारीगरों, श्रमिकों
समेत असंगठित क्षेत्र के सारे लोगों की आय बढ़ाने के उपाय किए जाएं। इन्हीं की क्रयशक्ति के बल पर
डॉक्टर, शिक्षक, वकील जैसे अन्य रोजगार सृजित होते या बढ़ते हैं। लेकिन बेरोजगारी की चर्चा अमूमन
उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं के संदर्भ में ही होती है। अन्य तबकों में व्याप्त बेरोजगारी, अर्धरोजगार,
असुरक्षित रोजगार, शोषणपूर्ण रोजगार और निर्वाह-स्तर से कम आय आदि पर कभी कोई बहस ही नहीं
होती। हमें समझना होगा कि दूसरे तबकों के पास पर्याप्त आय के साधन होंगे, तभी रोजगार के पिरामिड
का विस्तृत और मजबूत आधार बनेगा और उसी के सहारे उच्च शिक्षा वाले रोजगार के ज्यादा अवसर भी
पैदा होंगे।