विकास गुप्ता
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सऊदी अरब यात्रा को दोनों देशों के बीच संबंधों में नई ऊर्जा भरने के लिहाज
से बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। प्रधानमंत्री ‘फ्यूचर इन्वेस्टमेंट इनिशिएटिव’ फोरम (दावोस इन द
डेजर्ट) में शामिल होने के लिए दो दिन के दौरे पर सऊदी अरब गए थे, जहां दोनों देशों के बीच तेल एवं
गैस, रक्षा तथा नागर विमानन सहित विभिन्न प्रमुख क्षेत्रों में कई अहम समझौते हुए। मोदी की सऊदी
यात्रा के दौरान दो महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, जिनमें से एक है ‘इंडियन स्ट्रैटिजिक पैट्रोलियम
रिजर्व लिमिटेड’ तथा ‘सऊदी आरामको’ के बीच हुआ समझौता, जिसके तहत सऊदी अरब कर्नाटक में
तेल रिजर्व रखने का दूसरा प्लांट बनाने में अहम रोल अदा करेगा। दूसरा समझौता है, भारत के इंडियन
ऑयल कॉरपोरेशन की पश्चिमी एशिया यूनिट तथा सऊदी अरब की अल-जेरी कम्पनी के बीच हुआ
समझौता। इस यात्रा के दौरान ‘भारत-सऊदी अरब रणनीतिक साझेदारी परिषद’ के गठन की घोषणा भी
की गई, जिसमें दोनों देशों का नेतृत्व शामिल होगा, जो भारत को अपनी उम्मीदों और आकांक्षाओं को
पूरा करने में मदद करेगा। इस परिषद की अगुवाई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा सऊदी प्रिंस मोहम्मद
बिन सलमान करेंगे और परिषद दो वर्ष के अंतराल पर मिला करेगी।
सऊदी अरब ही वह प्रमुख देश है, जिसकी मुस्लिम देशों में भारत की पैठ बनाने में बहुत महत्वपूर्ण
भूमिका रही है और वह ऊर्जा क्षेत्र तथा आर्थिक मोर्चे के साथ-साथ कूटनीतिक मोर्चे पर भी भारत के
प्रमुख सहयोगी के रूप में तेजी से उभरा है। हालांकि एक समय था, जब भारत और सऊदी अरब के बीच
संबंध इतनेे बेहतर नहीं थे। इसका सबसे बड़ा कारण था कि सऊदी अरब को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में
देखा जाता था, जिसकी नीति सदैव पाकिस्तान परस्त और पाक समर्थित ही रही और जो भारत के
विरूद्ध पाक प्रायोजित आतंकवाद को धन तथा अन्य संसाधन मुहैया कराता था। तब सऊदी अरब हर
कदम पर पाकिस्तान के साथ ही खड़ा नजर आता था लेकिन भारत की 2008 में शुरू हुई ‘लुक ईस्ट
नीति’ के बाद से वह धीरे-धीरे भारत के करीब आ रहा है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अब तक दो
बार की सऊदी अरब यात्राओं के बाद दोनों देशों के संबंधों में व्यापक सुधार देखा जा रहा है। पिछले तीन
वर्षों में प्रधानमंत्री की यह दूसरी सऊदी यात्रा थी। इससे पहले वे 2016 में सऊदी अरब गए थे और तब
वहां के बादशाह सलमान ने उन्हें सऊदी अरब के ‘सर्वोच्च नागरिक सम्मान’ से सम्मानित किया था।
उसके बाद इसी साल पुलवामा हमले के बाद दोषियों को सजा दिलाने की भारत की वैश्विक मुहिम को
अंतर्राष्ट्रीय समर्थन मिलने के दौर में सऊदी क्राउन प्रिंस भारत के दौरे पर आए थे। भारत यात्रा के दौरान
उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ भारत की मुहिम का समर्थन किया था। उस दौरान दोनों देशों के बीच पांच
महत्वपूर्ण समझौते भी हुए थे।
यह भारत की आर्थिक और कूटनीतिक सफलता ही है कि एक ओर वह सऊदी अरब को एक बड़े
व्यापारिक साझेदार के रूप में जोड़ने में सफल रहा है, वहीं सऊदी अरब भारत के रूख को समझते हुए
कश्मीर को अब भारत का आंतरिक मामला मानता है और संकेत दे चुका है कि इस मुद्दे पर वह अब
पाकिस्तान के पक्ष में नहीं है। गौरतलब है कि मोदी और सऊदी अरब के युवराज के बीच प्रतिनिधिमंडल
स्तर की वार्ता के बाद जारी संयुक्त बयान में दोनों देशों के आंतरिक मामलों में सभी रूपों में हस्तक्षेप
को खारिज कर दिया गया। प्रधानमंत्री की इस बार की सऊदी यात्रा के बाद दोनों पक्ष रक्षा तथा सुरक्षा
क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर भी सहमत हुए हैं और अब दोनों देश अपना पहला संयुक्त नौसैनिक अभ्यास
मार्च 2020 में करेंगे। भारत तथा सऊदी अरब के घनिष्ठ होते संबंधों की अहमियत इसी से समझी जा
सकती है कि पाकिस्तान के लाख प्रयासों के बावजूद सऊदी अरब अब भारत को पूरा महत्व देने लगा है।
सऊदी अरब के लिए भारत उन आठ बड़ी शक्तियों में से एक है, जिनके साथ वह अपने ‘विजन 2030’
के तहत रणनीतिक साझेदारी करना चाहता है। भारत के साथ संबंधों में सुधार के पीछे उसके सहयोग का
यह भी एक बड़ा कारण है। आपसी संबंधों को बेहतर करने की दिशा में दोनों देश अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर
अब लगातार दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय दे रहे हैं।
सऊदी अरब ने बेहद बुरे समय में भी हमेशा पाकिस्तान की भरपूर मदद की है और पाकिस्तान के साथ
उसके रिश्ते आज भी अच्छे ही हैं लेकिन इसके बावजूद जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने के
बाद तुर्की और मलेशिया के एकदम विपरीत जिस प्रकार का सकारात्मक रूख सऊदी ने दिखाया और
कश्मीर मुद्दे पर बढ़ते संकट को लेकर पाकिस्तान को चेताया भी, उससे भारत-सऊदी संबंधों की ऊष्मा
को महसूस किया जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के तमाम प्रोपेगेंडा के बाद भी सऊदी
साफ संकेत दे चुका है कि वह कश्मीर मसले पर भारत की चिंताओं और संवेदनशीलता को समझता है।
सऊदी अरब कश्मीर मसले पर भारत के रूख का सम्मान करते हुए यह मानने लगा है कि भारत जो भी
कर रहा है, अपनी आबादी की बेहतरी के लिए कर रहा है। पाकिस्तान का प्रमुख सहयोगी माना जाने
वाला सऊदी अरब ही अगर अब क्षेत्र को आतंकवाद मुक्त बनाने के भारत के अभियान में उसका पक्ष ले
रहा है और इस चुनौती से निपटने के लिए पूर्ण सहयोग देने की प्रतिबद्धता जता रहा है तो भारत की
इससे बड़ी कूटनीतिक सफलता और कोई हो भी नहीं सकती। बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत को
आतंकवाद के मुद्दे पर सऊदी अरब का समर्थन भारत के बढ़ते महत्व और सकारात्मक कूटनीति का ही
परिणाम है।
भारत और सऊदी अरब के बीच प्रगाढ़ होते संबंधों का सीधा असर अब सऊदी-पाकिस्तान के संबंधों पर
देखा जा रहा है, जिसकी बानगी पिछले दिनों देखने को भी मिली। संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में हिस्सा
लेने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान सऊदी क्राउन प्रिंस के विमान में ही न्यूयार्क गए थे और उस
समय प्रिंस ने इमरान को सख्त हिदायत भी दी थी कि वह संयुक्त राष्ट्र के मंच पर कश्मीर का मुद्दा
न उछालें और इस मुद्दे को दूसरे इस्लामिक राष्ट्रों से भी न जोड़ें लेकिन जब इमरान ने संयुक्त राष्ट्र
की आम सभा में इसी मुद्दे को पुरजोर तरीके से उछालते हुए भारतीय प्रधानमंत्री को सीधे-सीधे निशाना
बनाने की कोशिश की तो उनकी इस हरकत से सऊदी प्रिंस इस कदर खफा हुए कि उन्होंने अपना विमान
ही वापस बुला लिया था, जिसके बाद इमरान को कमर्शियल प्लेन से अपने वतन लौटना पड़ा था। सऊदी
अरब की इस नाराजगी को भांपते हुए इमरान ने पिछले माह इसीलिए दोबारा सऊदी का दौरा किया था।
पिछले कुछ वर्षों में भारत और सऊदी अरब के बीच व्यापारिक रिश्ते काफी मजबूत हुए हैं और दोनों के
बीच व्यापार तेजी से बढ़ा है। सही मायनों में पिछले कुछ समय में सऊदी अरब विभिन्न मोर्चों पर भारत
का एक भरोसेमंद साथी ही साबित हुआ है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता देश है,
जो अपनी जरूरतों का करीब 83 फीसदी तेल आयात करता है और इराक के बाद भारत के लिए सऊदी
अरब ही दूसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है, जो भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी बन
गया है। दोनों देशों के संबंधों के पुख्ता होने का स्पष्ट संकेत देती सबसे अहम बात यह है कि तेल के
उत्पादन में 50-60 फीसदी कमी हो जाने के दिनों में भी सऊदी ने कभी भी भारत को तेल देने में
आनाकानी नहीं की। वर्ष 2017-18 में दोनों देशों के बीच 27.48 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ
था और अब सऊदी अरब भारत में 100 अरब डॉलर का निवेश करने जा रहा है, जो ऊर्जा, रिफाइनरी,
पैट्रोकेमिकल्स, कृषि तथा खनन क्षेत्र में होगा। दूसरी ओर भारत भी सऊदी में स्मार्ट सिटी, रेड सी
टूरिज्म, एंटरटेनमेंट सिटी जैसी परियोजनाओं में हिस्सेदारी बढ़ा रहा है। भारत अपनी आवश्यकताओं का
18 फीसदी कच्चा तेल तथा 32 फीसदी एलपीजी सऊदी से ही आयात करता है और वहां से करीब 22
अरब डॉलर के पैट्रो पदार्थ खरीदता है। 2018-19 में सऊदी अरब ने भारत को 40.33 मिलियन टन क्रूड
ऑयल बेचा था। सऊदी में 27 लाख से भी ज्यादा भारतीय रहते हैं, जिनमें से करीब 15 लाख वहां
रोजगार कर रहे हैं और इन्हीं के जरिये प्रतिवर्ष भारत में 11 बिलियन डॉलर से भी अधिक विदेशी मुद्रा
आती है।
ऐसा नहीं है कि केवल भारत को ही सऊदी अरब की जरूरत है बल्कि आजकल जिस तरह का वैश्विक
माहौल है, उसके चलते सऊदी को भारत की भी उतनी ही जरूरत है। वैश्विक मंचों पर जिस प्रकार भारत
की हैसियत लगातार बढ़ रही है, ऐसे में सऊदी भी विभिन्न क्षेत्रों में भारत के साथ साझेदारी करना
चाहता है। पूरी दुनिया जिस तरह की आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रही है, उससे सऊदी भी अछूता नहीं
है। सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था तेल पर ही निर्भर रही है लेकिन कच्चे तेल के दामों में गिरावट से वह
पहले से ही परेशान है। दूसरी ओर यमन के साथ लड़ाई में शामिल होने के चलते उसका खर्च काफी बढ़
गया है। यही कारण है कि उसने अब तेल और गैस के व्यापार से बाहर निकलकर दूसरे क्षेत्रों में भी
निवेश कर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के प्रयास शुरू किए हैं। भारत के अलावा अमेरिका,
जापान, दक्षिण कोरिया इत्यादि देशों के साथ संबंधों में सुधार की कवायद के पीछे यह भी बहुत
महत्वपूर्ण कारक है। सऊदी अरब अब अपनी कट्टर मुस्लिम राष्ट्र की छवि से बाहर निकलने की
लगातार कोशिश कर रहा है, जिसके चलते उसने अपने वहां महिलाओं को कई प्रकार के अधिकार भी
दिए हैं। सऊदी अरब के इस तरह के प्रयासों की पूरी दुनिया ने सराहना की है। बहरहाल, जहां भारत और
सऊदी अरब के प्रगाढ़ होते संबंधों से दोनों देशों में बढ़ते आपसी कारोबार के चलते दोनों में ही आर्थिक
तरक्की के नए रास्ते खुलेंगे, वहीं इन रिश्तों में नई ऊर्जा भरने से आने वाले समय में एशिया महाद्वीप
के राजनीतिक समीकरण भी नए रूप में सामने आ सकते हैं।