विनय गुप्ता
मौसम परिवर्तन और बीमारियों का चोली दामन का साथ है। नवम्बर का महीना शुरू होते होते मौसम भी
करवट लेता है। यह सर्दी की शुरुआत और गर्मी की विदाई का समय है। तापमान में भी घटत बढ़त होता
है। इस समय उत्तर भारत सहित देश के अनेक भागों में बेमौसम वर्षात हो रही है जो हमारे स्वास्थ्य के
लिए हानिकारक है। ऐसे में बहुत से लोग मौसम में परिवर्तन को झेल नहीं पाते और तबीयत बिगड़
जाती है। विशेषकर जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है वे मौसमी बीमारियों का शिकार हो जाते है।
राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, यूपी,एमपी आदि प्रदेशों से मिली खबरों के मुताबिक मौसम परिवर्तन
के साथ ही मौसमी बीमारियां और वायरल बुखार का प्रकोप पैर पसारने लगा है, जिसके चलते
चिकित्सालय में मरीजों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। रोगियों को घंटों लाइन में लगने के बाद
चिकित्सक को दिखाने के लिए नंबर आ रहा है। मौसम परिवर्तन के साथ ही सर्दी, खांसी- जुकाम,
चिकनगुनिया, डेंगू, वायरल बुखार, उल्टी- दस्त के रोगियों की संख्या बढ़ी है। मच्छरों का प्रकोप भी
बीमारियां बढ़ाने में सहायक हो रहा है। डॉक्टरों के अनुसार तापमान में उतार-चढ़ाव के चलते मौसमी
बीमारियां बढ़ी हैं। इस मौसम में जोड़ों में दर्द, बदन दर्द, सिरदर्द, खांसी, जुकाम एवं बुखार होता है।
बदलते मौसम में खान पान में सतर्कता रखनी जरूरी है।
मौसम में आये बदलाव के साथ ही मौसमी बीमारियों ने दस्तक दे दी है। घर घर में मौसमी बीमारियां से
पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ती ही जारही है। अस्पतालों में बच्चे से बुजुर्ग तक इलाज के लिए लाइन में
लगे देखे जा सकते है। सरकार ने स्वास्थ्य विभाग को पहले ही अलर्ट कर दिया था। मगर बुखार ,स्वाइन
फ्लू , स्क्रब टाइफस और डेंगू के मरीजों में दिन प्रतिदिन बढ़ोतरी देखी जारही है। राजस्थान में डेंगू
बुखार ने कहर मचा रखा है। अस्पतालों में डेंगू पीड़ितों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही है।
सरकारी उपाय नाकाफी साबित हो रहे है। यही स्थिति उत्तर भारत के अन्य प्रदेशों की है।
इस समय मौसम ने जो अंगड़ाई ली है उसमें कभी गर्मी और कभी ठंडक का एहसास हो रहा है। मौसम
का यह बदलाव मानव के स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। इससे बचने का एक मात्र उपाय
सतर्कता और जागरूकता ही है। यह बीमारियां आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित कर कई बार
आपके आंतरिक अंगों को भी प्रभावित करती हैं। इनसे बचने के लिए सावधानी रखना बेहद आवश्यक है।
खान-पान और साफ-सफाई का ध्यान न दे पाने की वजह से चिकनगुनिया और डेंगू की समस्या से लोगों
को दो दो हाथ करने पड़ रहे है। मौसम बदलने के साथ ही बीमारियों का होना भी शुरू हो जाता है और
बुखार- जुकाम आदि बीमारियां ज्यादा होने लगती है। चिकनगुनिया, डेंगू आदि होने का खतरा भी बढ़
जाता है और कई बार हम पहचान नहीं कर पाते हैं कि रोगी को चिकगुनिया की बुखार है या डेंगू बुखार
या फिर सामान्य बुखार। इस वजह से बीमारी ज्यादा बढ़ जाती है और मुश्किल से नियंत्रण में आती है।
चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि मौसम परिवर्तन और तेजी से होने वाले शहरीकरण के असर ने इन
बीमारियों को फैलने में सहायता की है।
कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में कंस्ट्रक्शन बढ़ा है। यह मच्छरों से होने वाली बीमारी का एक कारण है।
कंस्ट्रक्शन साइट्स पर मच्छर ज्यादा पनप रहे हैं। वहीं पहले के मुकाबले सर्विलांस बढ़ा है। इस वजह से
भी डेंगू के मामले अिधक दर्ज हो रहे हैं। बताते हैं कि न तो डेंगू, चिकनगुनिया की कोई दवा है और न
ही वैक्सीन। चिकनगुनिया और डेंगू मच्छर के काटने की वजह से होते हैं। मादा एडिस एजिप्टी मच्छर के
काटने कारण माना जा रहा है। लेकिन कुछ मामलों में, एडीज मच्छर का काटना भी इस बीमारी की
वजह मानी जा रही है। चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि 5 अलग-अलग प्रकार के वायरस इन
मच्छरों से फैल रहे हैं, जो इस बीमारी का कारण बन रहे हैं। डेंगू गैर-संक्रामक है, यह एक मरीज से
सीधे किसी अन्य व्यक्ति में नहीं फैल सकता। चिकनगुनिया वायरस भी मच्छर ही द्वारा किया जाता है।
हालांकि दोनों बीमारियों की पहचान विशिष्ट वायरस से हो सकती है।
शुरुआत में चिकनगुनिया में तेज बुखार, लगातार सिरदर्द, आंखों से पानी आना और थकान होना इसकी
विशेषता है। इस बीमारी में भले बुखार उतर जाए, लेकिन थकान और सिरदर्द बना रहता है। अधिकांश
रोगियों को जोड़ों में दर्द की शिकायत भी होती है। यह दर्द हफ्तों और महीनों के लिए बना रह सकता है।
तेज बुखार, सिर दर्द, मतली आना, बदन दर्द और लाल चकत्ते होना डेंगू की पुष्टि करता है। रोगियों की
संख्या में डेंगू बुखार एक रक्तस्रावी जो अनिश्चितता के बादल कम ब्लड प्लेटलेट्स का स्तर और रक्त
प्लाज्मा के रिसाव में परिणाम का कारण बनता है। डेंगू भी भारी रक्तस्राव मौत का कारण बन सकता
है। डेंगू और चिकनगुनिया के बीच का अंतर जानने के लिए रोगी के खून की जांच जरूरी है। इससे खून
में मौजूद विशिष्ट वायरस का पता लगा सकते हैं।