अर्पित गुप्ता
अगर नई शिक्षा नीति, एनईपी- 2019 का ड्राफ्ट उसकी परिकल्पना के अनुसार 2035 तक अमल में आ
जाता है तो शिक्षा जगत में कई बदलाव देखने को मिलेंगे। यह दस्तावेज 484 पृष्ठों में शिक्षा बदलाव की
विस्तृत योजना का प्रारूप पेश करता है। साथ ही भारत जैसे विशाल देश की विभिन्नताओं को आत्मसात
करते हुए समूचे देश में एक समान गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की वकालत करता है। मनोविज्ञान के अनुसार 8
साल से कम उम्र के बच्चे भाषाएं ज्यादा तेजी से सीखते हैं। भाषा सीखना बच्चों के संज्ञानात्मक विकास
का सबसे जरूरी पहलू है। इसलिए एनईपी -2019 का ड्राफ्ट कहता है कि इस अवस्था में बहुत-सी भाषाएं
सिखाई जानी चाहिए। कम उम्र से ही बच्चों को न्यूनतम तीन भाषाएँ तो अवश्य सिखाएं। साथ ही यह
सर्वाधिक जरूरी है कि बच्चों को अपनी मातृभाषा में निपुणता प्राप्त हो।
पढ़ने-लिखने के भाषाई हुनर के मामले में मातृभाषा ही सबसे कारगर औजार होता है। जब मातृभाषा में
पर्याप्त प्रवीणता हासिल कर ले तब दूसरी-तीसरी आदि भाषाओं की औपचारिक पढ़ाई के लिए बच्चे तैयार
हो सकते हैं। इसमें स्कूल पूर्व शिक्षा, स्कूल और उच्च शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक, वयस्क, शिक्षक
प्रशिक्षण व कई शैक्षिक नवाचार सम्मिलित है। ड्राफ्ट मानता है कि शिक्षक वह धुरी है जिसके चारों तरफ
शिक्षा की इस क्रांति को अंजाम दिया जा सकता है। शिक्षा और शिक्षकों को उनका हक देना आवश्यक है।
शिक्षकों पर भरोसा करें, उन पर विश्वास करें। उन्हें पेशेवर तौर-तरीकों के साथ तैयार करना आवश्यक है।
वर्ष 1964 की कोठारी आयोग की रिपोर्ट के अनुसार गुणवत्ता पूर्ण आवश्यकता आधारित स्कूल परिसरों
का निर्माण किया जाएगा। सरकारी स्कूलों को नए सिरे से बनाकर संगठनात्मक और प्रशासनिक इकाइयों में बदला जाएगा। इन्हें स्कूल परिसर कहेंगे। स्कूल परिसर अपने अधीनस्थ सभी स्कूलों के अकादमिक
और प्रशासनिक मामलों का निर्वहन करेंगे। इन्हें पर्याप्त स्वायत्तता होगी। ये राज्य की शैक्षिक
विकेन्द्रीकरण व्यवस्था में अंतिम स्तर पर होंगे। स्कूल परिसर में एक सेकंडरी स्कूल कक्षा 9-12 तक
स्तर का होगा। इसके आसपास कई दूसरे स्कूल होंगे। ये स्कूल पूर्व प्राथमिक से कक्षा 8 तक की शिक्षा
व्यवस्था करेंगे। स्कूल परिसर मानवीय व भौतिक संसाधनों को साझा कर सकेंगे। सहयोगी स्कूलों में
लोकतंत्रिक सहभागिता सुनिश्चित की जाएगी। स्कूल परिसर प्रमुख को स्वायत्तता होगी। इस ड्राफ्ट के
अनुसार 5+3+3+4=15 के ढांचे के तहत औपचारिक शिक्षा में स्कूली शिक्षा दी जाएगी। कक्षा एक से
बारहवीं तक की स्कूली शिक्षा में प्री प्राइमरी से दूसरी तक 5 वर्ष, कक्षा 3 से 5 तक 3 वर्ष, कक्षा 6 से
8 तक 3 वर्ष एवं कक्षा 9 से 12 तक 4 वर्ष के कोर्स डिजाइन किए जाएंगे।
यह ड्राफ्ट वास्तव में केवल तोतारटंत को ही पढ़ाई समझने के विचार को सिरे से खारिज करती है। ड्राफ्ट
यशपाल समिति की रिपोर्ट- 1992 लर्निंग विदाउट बर्डन अर्थात बोझ के बिना सीखने को आगे ले जाते
हुए दिखाई पड़ता है। छात्रों पर विषय सामग्री और पाठ्यपुस्तकों के बोझ को कम करने के रास्ते बताता
है। पाठ्यक्रम की रूपरेखा सीखने के कई अन्य वैकल्पिक रास्ते दिखाता है। इसमें छात्र को अपने हाथों से
करते हुए अनुभव कर विश्लेषण से सीखने पर बल दिया है। दस्तकारी, खेल, योग, कला, संगीत, नाटक
व सामुदायिक सेवा सहित जरूरी विषय पाठ्यक्रम का हिस्सा होंगे। बहुभाषिक अधिगम, प्राचीन भारतीय
ज्ञान पद्धति, वैज्ञानिक दृष्टिकोण का निर्माण, डिजिटल साक्षरता, नैतिकता आधारित विवेक, सामाजिक-
सांस्कृतिक जिम्मेदारी, और सामुदायिक सहभागिता से जुड़ी शैक्षिक-सहशैक्षिक क्रियाकलापों को बढ़ावा
दिया जाएगा। शिक्षक को स्वायत्तता देकर सहज सरस सीखने पर जोर होगा। बोर्ड की परीक्षाएं अब
जिंदगी में केवल नौकरी पाना नहीं होगी। ये बेहद तनाव से भरी कवायद भी नहीं होगी।
परीक्षाएं सीखने का आधार होगी। छात्रों को कोचिंग के बिना समझने के अवसर दिए जाएंगे। बच्चे बिना
रटंत के समझ के आधार पर परीक्षा देंगे। कक्षा 8 और 12 के बीच छात्र साल में दो या इससे ज्यादा
बार बोर्ड की परीक्षाएं दे पाएंगे। परीक्षाएं कंप्यूटरीकृत अनुकूल परीक्षा प्रणाली के रूप में नियोजित की
जाएगी। वर्ष में कम से कम 24 विषयों में या औसतन एक सेमेस्टर में तीन बार परीक्षा देने के अवसर
होंगे। परीक्षाओं में केवल मूल क्षमताओं, आधारभूत शिक्षा, दक्षता और तार्किक विश्लेषण की परख की
जाएगी। एनईपी- 2019 में छात्रों के शैक्षिक परिणामों में सुधार के लिए शिक्षा मनोविज्ञानिक, साहसी और
स्वागतयोग्य सिफारिशें की गई है। यदि हम सभी बच्चों को अक्षर-अंकों के बुनियादी कौशलों में पारंगत
कर देते हैं तो यह विश्व रूपांतरण का मुख्य आधार बन पाएगी। यह प्रयास शिक्षा में ऐतिहासिक असर
कारक होगा।