शिशिर गुप्ता
इकतीस अक्तूबर को जम्मू-कश्मीर में एक नया सवेरा हुआ। जम्मू-कश्मीर राज्य दो अलग-अलग केंद्र
शासित राज्यों, मसलन लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में तबदील हो गया। इन दोनों राज्यों में भारतीय
संविधान पूरी तरह लागू हो गया। इससे पहले संघीय संविधान के अनुच्छेद 370 और 35 ए के कारण
राज्य के लोग एक अदृश्य घेरे के अंदर थे। जिस प्रकार नशे के आदी हो चुके नशेड़ी, यह नहीं समझ
पाते कि नशा उनके जीवन के लिए खतरा है, उसी प्रकार अनुच्छेद 370 के ड्रग एडिक्ट हो चुके बहुत से
कश्मीरी भी इसके नुकसान को समझ नहीं पा रहे थे। नशे का व्यापार करने वाले और उसके सप्लायर
कभी नहीं चाहते कि उनके ग्राहक कभी जान पाएं कि नशा कितना खतरनाक है, क्योंकि इससे उनका
व्यापार ठप होता है। इसी प्रकार कश्मीर घाटी में भी अरब, ईरान और मध्य एशिया से आए हुए सैयद,
गिलानी, हमदानी, मुगल, अफगानी, एंद्राबी, बुखारी, मुफ्ती, मुल्ला मौलवी नहीं चाहते थे कि कश्मीरी
अनुच्छेद 370 के नशे के दुष्परिणामों को जान पाएं। क्योंकि ऐसा होने से गिलानियों, सैयदों और
मुफतियों की राजनीति समाप्त हो जाती थी, लेकिन आश्चर्य की बात तो यह थी कि कुछ कश्मीरी
परिवार भी अपने पारिवारिक हितों के कारण, इन मध्य एशियायी लुटेरों के साथ जा मिले थे। परंतु
इकतीस अक्तूबर की मध्य रात्रि को जम्मू-कश्मीर के इतिहास में भी वही घटना हुई जिसका जिक्र कभी
पंद्रह अगस्त की अर्धरात्रि को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा भवन में किया था। उन्होंने
भारत की डैसटिनी की बात की थी। आज भी सरदार पटेल के जन्मदिन के अवसर पर जम्मू- कश्मीर को
देश के अन्य राज्यों के समान सभी अधिकार देकर उनके अधूरे काम को पूरा कर दिया गया है। बहुत
कम लोग जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर भी रियासती मंत्रालय के अंतर्गत आता था, लेकिन पंडित नेहरू ने
इसे पटेल से छीन कर अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया। पंडित जी की एक विशेष प्रवृत्ति थी । वे पहले
स्वयं ही घाव कर लेते थे और फिर उस घाव से होने वाले दर्द में से आनंद तलाशते थे। जम्मू-कश्मीर
ऐसा ही घाव था जो उन्होंने भारत के शरीर पर किया था। फिर उन्होंने स्वयं ही माऊंटबेटन दंपति के
चक्कर में फंस कर इस घाव का अंतरराष्ट्रीयकरण कर दिया। वे अपने घर की मामूली सी बात को पहले
समस्या में बदलते थे, फिर उसका अंतरराष्ट्रीयकरण कर उसे विशाल रूप देते थे। उसके बाद उसके हल
की ओर निकलते थे, ताकि लोगों को लगे कि पंडित जी बहुत बड़ी अंतरराष्ट्रीय समस्या के समाधान में
लगे हुए हैं। मनोविज्ञान के लोग इस को आत्ममुग्धता से ग्रस्त होना कहते हैं। पंडित जी का बस चलता
तो वे हैदराबाद की भी यही दशा कर देते। यह तो भला हो सरदार पटेल का कि उन्होंने थोड़ी सख्ती
दिखाई और हैदराबाद को पंडित जी के अंतरराष्ट्रीय प्रयोग से बचा लिए। पंडित जी के अंतरराष्ट्रीय
प्रयोगों का ही परिणाम है कि आज चीन भी लद्दाख को लेकर टिप्पणियां कर रहा है और पाकिस्तान से
मिल कर जम्मू-कश्मीर को विवादास्पद करार रहा है। भारत को दिए गए पंडित जी के इन अंतरराष्ट्रीय
घावों को भरने का साहसी कदम नरेंद्र मोदी ने उठाया, लेकिन दुर्भाग्य से आज नेहरू खानदान से किसी
न किसी रूप में जुड़ा हुआ कांग्रेस का कुनबाह, नेहरू द्वारा दिए गए इन घावों को भी उनकी विरासत
मानकर, इन्हें सहेज कर रखना चाहता है। पंडित नेहरू को कम से कम मरने से पहले अपनी इन
गलतियों का अहसास तो हो गया था, लेकिन नेहरु के नाम पर अभी भी आजीविका चला रहा यह कुनबा
तो नेहरू की उन गल्तियों को एक बार फिर दोहरा कर अपने मानसिक दीवालिएपन का ही सबूत दे रहा
है। यही कारण है कि आज जम्मू-कश्मीर के बारे में पाकिस्तान और सोनिया कांग्रेस की भाषा एक समान
है जबकि सारे भारत की भाषा दूसरी है। यदि अब भी जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के इस घाव को न
भरा जाता तो निकट भविष्य में इसके कैंसरिक हो जाने का खतरा बढ़ गया था। नरेंद्र मोदी ने ठीक
समय पर उसका सही आपरेशन करके देश को बचा लिया है। यह ठीक है आपरेशन की पीड़ा से घाटी में
कुछ लोग थोड़ी देर तक सराहते हुए देखे जाएंगे, लेकिन दूरगामी दृष्टि से देखें तो इससे उनके भी
स्वास्थ्य में जल्दी ही सुधार होना शुरू हो जाएगा, जो अभी पीड़ा से करार रहे हैं, लेकिन इनको कुछ देर
तक अपने खान-पान का ध्यान रखना होगा। यदि फिर से आतंकवादियों की भाषा बोलने लगे और उन्हीं
के साथ आंख मिचौली करने लगे तो फिर गिलानियों, मुफतियों के स्वास्थ्य में सुधार होना मुश्किल है,
लेकिन ध्यान रखना होगा कि कश्मीर की जनता अब ज्यादा देर तक गिलानियों व मुफतियों की बेकार
नहीं कर पाएगी, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में भी और लद्दाख में भी नई सुबह हो गई है। अलबत्ता जिनको
लंबे अरसे से अंधेरे में रहने के कारण सूर्य की किरणों से डर लगने लगा था, वे कुछ देर तक जरूर आंखें
मिचमुचाते देखे जा सकेंगे, लेकिन सेहत के लिए जरूरी है कि सूर्य के प्रकाश में रहने की आदत डाली
जाए।