चिंताजनक है पुलिसिया तफ़्तीश पर सवाल उठना

asiakhabar.com | October 24, 2019 | 5:35 pm IST
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संयोग गुप्ता

देश में पिछले दिनों दो ऐसी घटनाएं घटित हुईं जिन्होंने जनता का पूरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित
किया। पहली घटना गत 12 अक्टूबर शनिवार को प्रातःकाल उत्तरी दिल्ली का वीआईपी इलाक़ा समझे
जाने वाले सिविल लाइंस थाना क्षेत्र में घटित हुई। इस घटना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भतीजी
दमयंती मोदी के साथ झपटमारी अथवा राहज़नी की घटना पेश आई। दिल्ली पुलिस के अनुसार 12
अक्टूबर शनिवार को क़रीब सात बजे दमयंती बेन मोदी ऑटो में बैठकर जैसे ही गुजराती समाज भवन
के पास अपने परिवार के साथ ऑटो से उतरने लगीं, उसी समय दो स्कूटी सवारों ने उन पर झपट्टा
मारा। दमयंती बेन सपरिवार अमृतसर से दिल्ली आई थीं तथा उन्हें उत्तरी दिल्ली के सिविल लाइंस क्षेत्र
स्थित गुजराती समाज भवन पहुंचना था। ज्यूं ही उनका ऑटो गुजराती समाज भवन के मुख्य द्वार के
सामने पहुंचा ठीक उसी क्षण स्कूटी पर सवार दो बदमाशों ने दमयंती बेन मोदी पर झपट्टा मारा और
उनका पर्स उनके हाथों से छीन कर फ़रार हो गए। दमयंती बेन के अनुसार उनके पर्स में लगभग 56
हज़ार रुपये, दो मोबाइल फ़ोन और कई ज़रूरी काग़ज़ात थे। उन्हें घटना के दिन अर्थात शनिवार को ही
अहमदाबाद की विमान यात्रा भी करनी थी। परन्तु पर्स के साथ ही उनके यात्रा संबंधी ज़रूरी काग़ज़ात भी
झपटमारी में चले गए थे। सिविल लाइंस के जिस इलाक़े में प्रधानमंत्री की भतीजी के साथ दिनदहाड़े यह
सनसनीख़ेज़ वारदात पेश आई उसी स्थान के बिल्कुल क़रीब ही दिल्ली के उप-राज्यपाल का आवास है
और वहीँ पर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री का निवास भी है। दिल्ली विधानसभा भी इसी घटना स्थल के
समीप ही स्थित है।
बहरहाल, बधाई के पात्र है दिल्ली की चुस्त, दुरुस्त, कुशल, सक्षम व कर्तव्यनिष्ठ पुलिस जिसने राहज़नी
की इस घटना के मात्र 24 घंटे के भीतर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भतीजी दमयंती मोदी के साथ
राजधानी दिल्ली में हुई इस लूट के मामले में दिल्ली पुलिस ने गौरव उर्फ़ नोनू (21वर्ष) नाम के एक
बदमाश को हरियाणा के सोनीपत से गिरफ़्तार कर लिया। और कुछ ही देर बाद पुलिस ने बादल नामक
दूसरे आरोपी को भी गिरफ़्तार कर लिया। पुलिस के अनुसार नोनू नाम का अपराधी पहाड़गंज थाना क्षेत्र
में नबी करीम का रहने वाला है। पुलिस ने अपराधी नोनू की निशानदेही पर पीएम मोदी की भतीजी
दमयंती बेन के पर्स में मौजूद 56 हज़ार रूपये की नक़दी, दो मोबाइल फ़ोन और काग़ज़ात भी बरामद
कर लिए। इतना ही नहीं बल्कि दिल्ली पुलिस ने राहज़नी की इस घटना में इस्तेमाल की गई स्कूटी भी
बरामद कर ली। निश्चित रूप से देश को दिल्ली पुलिस की इस क़द्र चौकसी व उसकी तत्परता पर नाज़
है जिसने भीड़ भाड़ वाली घनी राजधानी में होने वाले इस अपराध का पटाक्षेप अपनी कार्यकुशलता का
शानदार प्रदर्शन करते हुए कर डाला।
ऐसा ही एक हाई प्रोफ़ाइल अपराध गत 18 अक्टूबर शुक्रवार की दोपहर को पुराने लखनऊ के अति व्यस्त
एवं भीड़ भरे चौक इलाक़े में उस समय घटित हुआ जबकि हिन्दू समाज पार्टी के अध्यक्ष कमलेश तिवारी
की हत्यारों ने उन्हीं के घर में ही गला रेत कर हत्या कर दी। उत्तर प्रदेश पुलिस ने भी इस हत्याकांड की
गुत्थी सुलझाने का दावा मात्र 48 घंटे के भीतर ही कर डाला। पुलिस ने संदिग्धों के स्केच भी जारी किये

और उनपर ढाई लाख रुपए के इनाम की घोषणा भी कर दी। अब तक चार संदिग्ध हत्यारों की गिरफ़्तारी
का दावा भी उत्तर प्रदेश पुलिस कर चुकी है। उत्तर प्रदेश, गुजरात तथा महाराष्ट्र से संदिग्धों की गिरफ़्तारी
की ख़बरें हैं। माना जा सकता है कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भतीजी दमयंती मोदी
के साथ झपटमारी की घटना की ही तरह वैसी ही तत्परता कमलेश तिवारी की हत्या के मामले में भी
दिखाई जैसी दिल्ली पुलिस ने गत दिनों दिखाई थी। निश्चित रूप से पूरा देश पुलिस से ऐसी ही चौकसी
बरतने व अपराधियों को पकड़ने में इसी प्रकार की तेज़ी व तत्परता प्रदर्शित करने की उम्मीद करता है।
परन्तु उपरोक्त वारदातों के बाद दिखाई गई त्वरित पुलिसिया तफ़्तीश व इससे सम्बंधित गिरफ़्तारियों से
एक सवाल यह भी उठता है कि क्या इस प्रकार की तफ़्तीश और यथाशीघ्र संभव लूटे गए माल की
बरामदगी करना व हत्या के आरोपियों को गिरफ़्तार करने जैसा कर्तव्य निर्वाहन चुनिंन्दा व हाई प्रोफ़ाइल
मामलों तक ही सीमित रहता है या फिर आम लोगों के साथ घटित होने वाले अपराधों में भी पुलिस
इतनी ही तत्परता बरतती है? आज देश में ऐसे ही न जाने कितने ऐसे अपराधिक मामले हैं जिनमें
अपराधियों का कोई सुराग़ ही नहीं मिल पा रहा है। ऐसा ही सबसे चर्चित जे एन यू के छात्र नजीब की
गुमशुदगी का मामला है। यह जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की तीन वर्ष पूर्व अक्तूबर 2016 की
घटना है। 14 अक्तूबर 2016 की रात जे एन यू कैंपस स्थित हॉस्टल में नजीब अहमद और अखिल
भारतीय विद्यार्थी परिषद् के कुछ छात्रों के बीच मारपीट की घटना घटित हुई। इससे अगले ही दिन यानी
15 अक्तूबर 2016 को जे एन यू कैंपस स्थित माही-मांडवी हॉस्टल से नजीब अहमद लापता हो गया।
इसके अगले दिन 17 अक्तूबर को विश्वविद्यालय प्रबंधन ने नजीब के परिजनों के साथ दिल्ली पुलिस में
नजीब के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज करवाई। इसके बाद दिल्ली पुलिस की जांच चलती रही। परिजनों
की मांग पर अदालत ने जांच का ज़िम्मा सीबीआई को सौंपा। इसके बावजूद आज तक किसी भी जांच
एजेंसी को नजीब से जुड़ी कोई जानकारी हासिल नहीं हो पाई है। गत 15 अक्टूबर को अपने बेटे नजीब
की गुमशुदगी के तीन वर्ष पूरे होने की पूर्व संध्या पर उसकी मां फ़ातिमा नफ़ीस जेएनयू पहुंची। दिल्ली
में पत्रकारों माध्यम से फ़ातिमा नफ़ीस ने सरकर व पुलिस से यह सवाल पूछा कि 'जब अपराधी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भतीजी का पर्स झपट लेते हैं और देश की सबसे स्मार्ट पुलिस 24 घंटे में
अपराधियों के साथ-साथ लूट का सारा सामान व पैसा भी फ़ौरन बरामद कर लेती है। काश उसी तरह मेरे
बेटे नजीब के लिए भी दिल्ली पुलिस और सीबीआई ने इसी तरह से जांच की होती तो आज मैं शहर-दर-
शहर नहीं भटकती'। परन्तु आज तक दिल्ली पुलिस व सीबीआई न तो नजीब की तलाश कर सकी न ही
अपराधियों तक पहुंच सकी। यह तक पता नहीं चल पा रहा है कि नजीब ज़िंदा भी है या नहीं।
ऐसी ही और भी कई घटनाएं हैं जो पुलिस व जांच एजेंसियों की कार्य प्रणाली पर उंगली उठाती हैं। यह
सवाल उस समय और भी प्रखर हो जाते हैं जबकि हाई प्रोफ़ाइल मामलों में पुलिस आनन फ़ानन में
अपराधियों की गर्दन पर तो अपने हाथ डाल देती है परन्तु आम लोगों के मामले में ऐसी तत्परता नहीं
दिखा पाती। लिहाज़ा यदि भारतीय पुलिस व सुरक्षा एजेंसियों को अपनी प्रतिष्ठा क़ायम रखनी है तथा
आम जनता में अपने प्रति विश्वास बनाए रखना है तो साधारण से साधारण घटना में भी वैसी ही
चौकसी, कुशलता व तत्परता का परिचय देना चाहिए जैसा कि उसने गत एक सप्ताह में घटी उपरोक्त
दोनों घटनाओं में दिया है।


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