“दीदी बनाम दादा” बंगाल चुनाव

asiakhabar.com | October 19, 2019 | 5:28 pm IST
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विनय गुप्ता

जी हां बंगाल की राजनीति में बहुत बड़े उलट फेर होने का दृश्य दिखाई देने लगा है। क्योंकि, बंगाल की
राजनीति में दीदी बड़ी ही मजबूती के साथ टिकी हुई हैं। तमाम तरह के राजनीतिक दाँव पेंच के बावजूद
भी दीदी को बंगाल की सत्ता से हटा पाना बहुत ही मुश्किल दिख रहा था। क्योंकि, बंगाल की धरती पर
भाजपा का कोई भी ऐसा नेता नहीं है जोकि मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में दीदी का मुकाबला कर सके
शायद इसी की भरपाई करते हुए भाजपा ने यह बड़ा दांव चला है। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान
सौरव गांगुली भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड, यानी बीसीसीआई के अध्यक्ष बन गए। अब भारत में क्रिकेट
को तो सौरव गांगुली चलाएंगे। यह एक राजनैतिक दांव भी है, जिसकी रूपरेखा भारतीय जनता पार्टी के
राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तैयार की है। तृणमूल कांग्रेस, यानी टीएमसी की
प्रमुख तथा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चुनौती देने वाले के रूप में सम्भवतः सौरव
को पेश किया जा सकता है। अमित शाह ने पिछले सप्ताह दिल्ली स्थित अपने आवास में सौरव के साथ
एक संक्षिप्त मुलाकात की थी उसके तुरंत बाद उन्होंने असम के नेता हिमंत बिस्वा को मुंबई जाने के
लिए कहा। पश्चिम बंगाल की जंग में 'दादा बनाम दीदी' के पूरे आसार नजर आने लगे हैं। दर असल
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव 2021 में होना है, और क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल के अध्यक्ष
सौरव गांगुली अब तक अपने पत्ते खोलने से परहेज़ करते रहे हैं, उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार के सिर्फ
'स्वच्छ भारत' अभियान का ही समर्थन किया था। दिलचस्प तथ्य यह है कि बीसीसीआई के शीर्ष पर
सौरव गांगुली का कार्यकाल सिर्फ 10 महीने तक ही बचा है उसके बाद सौरव को अनिवार्य रूप से तीन
साल का 'कूलिंग ऑफ' पीरियड बिताना होगा, क्योंकि नियमों के अनुसार, क्रिकेट से जुड़े प्रशासनिक पदों
पर लगातार सिर्फ छह साल तक रहा जा सकता है इसलिए सौरव गांगुली को पश्चिम बंगाल विधानसभा
चुनाव 2021 के लिए प्रचार से जुड़कर नई पारी शुरू करने का बिल्कुल सही वक्त होगा। जबकि भाजपा
के मौजूदा राज्य प्रमुख मुकुल रॉय जोकि वर्ष 2017 में ममता बनर्जी की ही पार्टी से टूटकर आए थे,
उनके अथक परिश्रम ने सूबे में भाजपा को स्थापित किया और अपनी पुरानी पार्टी से बहुत से चेहरों को
भाजपा में लेकर भी आए लेकिन उनके पास वह वज़न और करिश्मा नहीं है, जिसके बूते वह अपनी
पुरानी बॉस अर्थात ममता बनर्जी का मुकाबला कर सकें। इसके अलावा मुकुल रॉय भ्रष्टाचार के कई
मामलों का भी सामना कर रहे हैं, और हाल ही में उन्हें प्रवर्तन निदेशालय ने समन भी भेजा था।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि भले ही अमित शाह के इस ताज़ातरीन दांव से मुकुल रॉय बहुत
खुश न हों, लेकिन उनके पास इस योजना का साथ देने के अलावा ज़्यादा विकल्प नहीं हैं। भाजपा ने
इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में अपनी राजनीतिक भूमि काफी हद तक बढ़ाई है। वर्ष
2014 में सिर्फ दो सीटें जीतने वाली भाजपा पार्टी ने इस बार 18 सीटों पर जीत हासिल की। अमित शाह
भी ममता बनर्जी को चुनौती देने के लिए उन्हीं की धरती पर बार-बार पहुंचे। सत्य यह है कि क्रिकेट
समूचे देश में जुनून की तरह छाया रहता है। इसीलिए सौरव गांगुली को राजनीति में पेश करना शाह की
रणनीति का एक बड़ा हिस्सा हो सकता है। क्योंकि, राजनीति के क्षेत्र में लिया गया हुआ फैसला कभी भी

साधारण रूप में नहीं होता, राजनीति की प्रत्येक चाल को राजनीति के ही चश्में से देखने की आवश्यकता
है। क्योंकि, राजनीति में किसी भी व्यक्ति को कोई भी पद बिना उद्देश्य के कदापि नहीं दिया जाता।
अब देखना यह है अमित शाह कि यह रणनीति कितनी सफल होती है।


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