संयोग गुप्ता
दिलचस्प है कि भाजपा नरेंद्र मोदी, शाह, पाकिस्तान, कश्मीर, राष्ट्रवाद और कूड़ा बीनने वाले प्रधानमंत्री
के जरिए विधानसभा चुनाव भी जीतना चाहती है। महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा के लिए 21
अक्तूबर को मतदान होना है। बेशक कुछ स्थानीय मुद्दे और आरोप-प्रत्यारोप भी हवा में हैं, लेकिन
भाजपा के तीनों शीर्षस्थ नेता-पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह-राष्ट्रवाद
और कश्मीर में अनुच्छेद 370 के मद्देनजर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। एक आरटीआई जवाब के मुताबिक,
हरियाणा में दिसंबर 2018 तक करीब 15.50 लाख बेरोजगार थे। आज तो स्थिति और भी भयावह होगी!
यह सूचना सार्वजनिक हुई तो जवाब देने वाले सूचना आयुक्त को ही हटा दिया गया। हरियाणा की
भाजपा सरकार ने आंकड़ों में संशोधन कराया, लेकिन फिर भी कबूल करना पड़ा कि हरियाणा में
बेरोजगारों की संख्या करीब 7.5 लाख है। सदन में भी जानकारी दी कि बेरोजगार करीब 6.25 लाख हैं।
यह आंकड़ा भी गंभीर है। इसी तरह 11,500 करोड़ रुपए टर्नओवर और करीब 16 लाख ग्राहकों की बचत
का पैसा जमा रखने वाले महाराष्ट्र के पीएमसी सहकारी बैंक का मामला भी चुनावी नहीं बन पाया है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने ग्राहकों का पैसा बंधक बना लिया है। एक सीमा तय कर दी गई है कि
ग्राहक उससे ज्यादा राशि बैंक खाते से नहीं निकाल सकेगा। किसी की आपातस्थिति से बैंक या सरकार
का कोई सरोकार नहीं। विदर्भ और किसानों की आत्महत्या भी प्रसंगवश सवाल हैं। चुनाव घोषणा पत्रों में
किसान कर्जमाफी, मुफ्त बिजली, बेरोजगारी भत्ते, कन्यादान, बुढ़ापा पेंशन सरीखे मुद्दों का उल्लेख किया
गया है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने जलगांव से चुनाव प्रचार का आगाज किया है, तो विपक्ष की ओर एक
गंभीर चुनौती उछाल दी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यदि हिम्मत है तो विपक्ष अपने चुनाव घोषणा पत्रों के
जरिए ऐलान करे कि अनुच्छेद 370 को वापस बहाल किया जाएगा। प्रधानमंत्री का आरोप था कि कांग्रेस-
एनसीपी पाकिस्तान की भाषा बोल रही हैं, मानो इन पार्टियों का पाकिस्तान से कोई तालमेल हो! बेशक
ये मुद्दे राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर महत्त्वपूर्ण हैं और 370 को समाप्त करने के बाद लगातार वैश्विक
बहस जारी है। यूएनओ में भी यह विषय गूंजा है। पूरा लोकसभा चुनाव राष्ट्रवाद, बालाकोट और
पाकपरस्त आतंकवाद पर लड़ा गया था। हालांकि जनादेश मिलने के बाद मोदी सरकार ने पांच अगस्त
को संसद के एकतरफा बहुमत के जरिए 370 की व्यवस्था को समाप्त किया था, लेकिन अब मौका
विधानसभा चुनावों का है। इन चुनावों में स्थानीय समस्याएं मुखर होती हैं। महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों
भाजपा शासित ऐसे राज्य हैं, जहां बेरोजगारी की दर प्रबल है। शायद राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा…!
हालांकि सरकारों ने अपेक्षाकृत ईमानदारी से नौकरियां भी दी हैं, लेकिन बेरोजगार युवा में आज आक्रोश
बहुत है। वह अनपेक्षित सीमा तक भी जा सकता है। पानी, सफाई, ड्रेनेज आदि अन्य समस्याएं हैं।
किसान कर्जमाफी और मुफ्त बिजली ऐसी घोषणाएं हैं जिनसे क्रेडिट लाइन बिगड़ती है। इनसे किसानों की
दुर्दशा कम नहीं हो सकती। यह टिप्पणी आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास और अर्थशास्त्री अरविंद
पनगढि़या की है। उसके बावजूद हरियाणा में तो ये चुनावी घोषणाएं देवीलाल के 1987 वाले चुनाव से
लगातार जारी हैं। अब लगभग प्रत्येक प्रमुख दल ने घोषणा पत्रों में इन घोषणाओं का उल्लेख करना शुरू
कर दिया है, जबकि ऐसा करना किसी भी सरकार के लिए व्यावहारिक नहीं है। संदर्भ राष्ट्रीय मुद्दों का
है। पाकिस्तान, कश्मीर, अनुच्छेद 370 आदि हरियाणा के चुनाव में कितने प्रासंगिक हैं। विधानसभा
चुनाव में स्थानीय मतदाता इन विषयों पर मतदान क्यों करे? देश में बेरोजगारी की दर औसतन छह
फीसदी से ज्यादा है, देश में आर्थिक मंदी की ओर बढ़ते आसार हैं, कभी भारत सरकार की नवरत्न
कंपनियां रहीं आज बंद होने के कगार पर हैं। हरियाणा में लैंगिक अनुपात बेहद संवेदनशील मुद्दा है। इन
समस्याओं पर चुनाव में लगभग सन्नाटा है। कुछ आरोप के तौर पर मुद्दे उठाए जाते रहे हैं, लेकिन
गूंज पाकिस्तान, बालाकोट, राफेल, पाकिस्तान पर वैश्विक पाबंदी, 370 और कैदखाना बने कश्मीर आदि
की है। बेशक मतदाता इनसे प्रभावित होता है, तो उस स्थिति में विधानसभा के लिए ईमानदार जनादेश
कैसे कहा जा सकता है?