संयोग गुप्ता
कश्मीर से धारा-370 हटाए जाने के बाद भारत और पाक में जारी तनातनी के बीच चीन के राष्ट्रपति शी
जिनपिंग भारत के दौरे पर आ रहे हैं। चीनी राष्ट्रपति के भारत दौरे को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां जोरों
पर हैं। दौरे को देखते हुए जहां भारत ने अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर होने वाले सैन्य अभ्यास हिम
विजय को फिलहाल रोक दिया है। वहीं इमरान खान के लाख गिड़गिड़ाने के बावजूद चीन ने कश्मीर को
भारत-पाक का द्विपक्षीय मामला बता दिया है। माना जा रहा है कि दोनों देश आपसी तनाव को कम
करने के लिए ऐसा कदम उठा रहे हैं। 1962 का युद्ध और डोकलम में विवाद के बाद दोनों देश एक-
दूसरे का भरोसा जीतने की कोशिशों में लगे हुए हैं। सीमा पर बढ़ती झड़पों की संख्या भी दोनों देशों के
नेताओं के बीच विश्वास बहाली में व्यवधान बन रहा है।
भारत एनएसजी की पूर्ण सदस्यता पाना चाहता है लेकिन चीन की हठधर्मिता के कारण भारत को
आशातीत सफलता नहीं मिल पा रही है। फिर भी प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम इस लक्ष्य को पाने के
लिए प्रयासरत हैं। प्रधानमंत्री मोदी के 2014 में देश की बागडोर संभालने के तुरंत बाद दोनों देशों के बीच
संबंधों को नया आयाम देने के लिए जिनपिंग ने 17 से 19 सितंबर 2014 के दौरान भारत की राजकीय
यात्रा की थी। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने गृह राज्य गुजरात के अहमदाबाद में जिनपिंग की जिस
तरह से अगवानी की उससे लगा था कि दोनों देशों के बीच संबंधों को नया आयाम मिलेगा। मगर समय-
समय पर आने वाले गतिरोधों से दोनों देशों के संबंधों में उतार-चढ़ाव का रुख देखने को मिलता रहा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 से 16 मई तक चीन का दौरा किया। इस दौरान पहली बार चीन ने किसी
विदेशी नेता का स्वागत बीजिंग से बाहर किया। जिनपिंग ने पीएम मोदी का स्वागत अपने गृहराज्य
शियान के शाशी में किया। पीएम मोदी के इस दौरे ने बड़े स्तर पर सुर्खियां बटोरी। दोनों नेता आपसी
व्यापार को 100 बिलियन डॉलर से ज्यादा करने की कोशिशों में लगे हुए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार
वर्तमान में दोनों देशों के बीच व्यापार लगभग 80 बिलियन डॉलर के आस-पास है। हालांकि, भारत की
चिंताओं में चीन द्वारा आरोपित गैर-टैरिफ बाधाएं, माल की डंपिंग और चीन द्वारा निवेश की कमी
शामिल है। भारत चीनी कंपनियों को भारत में अधिक निवेश के लिये आकर्षित करने की कोशिशों में
लगा है। साल 2017 में 18 जून को भारत-चीन-भूटान सीमा पर स्थित दोकलम में चीनी सेना ने घुसपैठ
कर अपनी स्थायी चौकी बना ली। जिसके जवाब में भारत ने भी अपनी सैन्य टुकड़ी को उनके सामने
खड़ा कर दिया। दोनों देशों के बीच यह तनाव लगभग 73 दिनों तक चलता रहा। इस मसले का समाधान
राजनयिक स्तर की वार्ता के बाद निकाला गया।
चीन हर कदम पर अपने सदाबहार दोस्त पाकिस्तान की मदद करता आ रहा है। अनुच्छेद 370 पर
शुरुआत में पाकिस्तान का समर्थन कर अलग-थलग पड़े चीन ने यू टर्न मारते हुए इसे दोनों देशों के बीच
द्विपक्षीय मामला बताया है। इसके अलावा आतंकवाद के मुद्दे पर भी उसने परोक्ष रूप से पाकिस्तान
को इसे बंद करने के लिए कहा है। वहीं अंदरखाने से चीन, पाकिस्तान को हर मोर्चे पर सहायता पहुंचा
रहा है। चीन की मदद से पाकिस्तान ने न्यूक्लियर बम बनाया। जिसकी धमकी वह हमेशा भारत को देता
रहता है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इस समय भी चीन में ओआरओबी की बंद पड़ी परियोजनाओं को फिर से
शुरू करने के लिए जिनपिंग से बात कर रहे हैं। आतंकी गतिविधि और टेरर फंडिग को रोकने में विफल
पाए जाने के बाद एफएटीएफ अब पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट करने जा रहा है। चीन अपने सदाबहार
दोस्त को बचाने के लिए इसमें अड़ंगा लगाने की कोशिश कर सकता है। वहीं पाकिस्तानी सेना को चीन
द्वारा दिए जा रहे आधुनिक हथियार भी भारत के लिए चिंता का विषय हैं। इस बार जिनपिंग पाकिस्तान
को धता बताकर भारत से काफी उम्मीदें लेकर आ रहे हैं, मगर जाने के बाद उनका क्या रुख होगा, यह
देखना दिलचस्प होगा।