संयोग गुप्ता
पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में विजयदशमी की धूम थी। रावण दहन को लेकर सभी धीरे-धीरे
मैदान में पहुंच रहे थे उस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी पहुंचे, लेकिन चौंकाने वाली बात ये
रही कि भाजपा से कोई भी नेता गांधी मैदान नहीं पहुंचा। इतना नहीं उनके लिए लगी कुर्सियां भी खाली
रह गईं। जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलावे कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा सहित कई
अन्य नेता भी मौजूद थे। आपको बता दें कि पिछले साल नीतीश कुमार के साथ सुशील मोदी और केंद्रीय
मंत्री रविशंकर प्रसाद भी कार्यक्रम में शिरकत किए थे। बिहार में भाजपा-जदयू-लोजपा की यानि एनडीए
की सरकार है मगर ये क्या इस कार्यक्रम में भाजपा और लोजपा के किसी नेता का मंच पर नहीं आना
राजनीतिक गलियारे में एक नया सवाल खड़ा कर दिया है। वहीं विपक्ष नीतीश कुमार के साथ भाजपा के
मंच पर नहीं आने को लेकर अपनी राजनीतिक गोटी सेंकने की कवायद शुरु कर चुकी है।
रावण वध कार्यक्रम में जब कोई भाजपा नेता नहीं दिखे मंच पर तो लोगों की बीच खुसपुसुर शुरु हो गई।
इस पूरे मसले पर दलों में सियासत शुरु हुई तो भाजपा नेता संजय टाइगर सामने आए और उन्होंने कहा
कि भाजपा-जदयू पूरी तरह एकजुट है नीतीश कुमार कार्यक्रम में पहुंच गए तो समझिए पूरा एनडीए पहुंच
गया। हलांकि इससे पहले केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का बयान आया था कि पटना में जलजमाव की
स्थिति से आम जनता को हुई परेशानी की वजह से नवरात्रि समारोह एवं विजयादशमी में शामिल नहीं
होंगे।
पटना में पिछले 64 वर्षों से रावण वध का कार्यक्रम गांधी मैदान में आयोजित हो रहा है। इस आयोजन
का पटनावासियों को सालभर तक इंतजार रहता है। इस कार्यक्रम में भाजपा नेताओं के लिए लगी कुर्सियों
जब खाली मिला तो मौके का फायदा उठाते हुए बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मदन मोहन झा उस पर
आसीन हो गए औऱ मुख्यमंत्री को तिरछी निगाहों से उनके मुस्कुराने का इंतजार करते रहे। मुख्यमंत्री
नीतीश कुमार राम-रावण के प्रसंग को सुन रहे थे या बिहार की सियासत को भांप रहे थे। मजे हुए
राजनीतिज्ञ की तरह नीतीश कुमार ने खाली कुर्सियों को देखकर भी अनदेखा तो किया लेकिन लोगों की
नजरों से कैसे बच पाता। नीतीश कुमार के इशारों को पाकर उनके करीब जा बैठे। रावण वध का उतना
सुकून झा जी को नहीं मिला होगा जितना नीतीश कुमार के बगल में बैठने का मजा ले रहे थे। क्योंकि
मुख्यमंत्री के आभामंडल क्षेत्र में रहना के अलग मायने है। फिलहाल पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से
दूरी बनाकर कांग्रेस विधवा विलाप ही कर रही थी। रावण वध में रावण के साथ कुंभ करण और मेघनाथ
जले तो साथ औऱ आखिरी दम तक रावण का साथ नहीं छोड़े।
अब ऐसे में देखना यह होगा की महागठबंधन में कौन किसके साथ है और कब किसका साथ छूटेगा उसे
खुद पता नहीं। बिहार की सियासत में जदय़ू के साथ भाजपा नेता का नहीं होना एक नए संशय को
जन्म देता है। हलांकि इधर कुछ दिनों से भाजपा और जदयू के कुछ नेता एक दूसरे पर बयानों के जरिए
आरोप लगाते रहे हैं और मौका देखकर पलटने में भी कोई कोताही नहीं छोड़ रहे हैं। इतना तो तय है कि
मुख्यमंत्री की कुर्सी हिल तो जरुर रही है मगर किसी अन्य दलों के पास कोई विकल्प नहीं है। बिहार में
सियासत कब किस करवट किसके साथ कौन सा कंबिनेशन बन जाएगा इसके बारे में कुछ भी कह पाना
थोड़ी जल्दबाजी होगी।