मंदी के बीच सौ दिन

asiakhabar.com | September 10, 2019 | 4:22 pm IST
View Details

शिशिर गुप्ता

किसी भी सरकार को पांच साल का जनादेश मिलता है, लिहाजा पहले 100 दिन का आकलन कोई
कसौटी नहीं है। फिर भी एक राजनीतिक फैशन है कि सरकार के पहले 100 दिनों का मूल्यांकन किया
जाता है। सरकार की नीति, नीयत, संकल्प और प्राथमिकताओं के आधार पर उसका विश्लेषण किया
जाता है। यह सच्चे लोकतंत्र की खूबसूरती ही है, लेकिन 100 दिनों के अंतराल में ही किन्हीं निष्कर्षों
तक नहीं पहुंचना चाहिए। कमोबेश दुराग्रहों से बचना चाहिए और जनता ने जिसे सरकार बनाने का
जनादेश दिया है, उसके कार्यों और सरोकारों की सराहना भी की जानी चाहिए। बंजर आलोचना ही विपक्ष

का दायित्व नहीं है। बेशक जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का निर्णय ऐतिहासिक और
जोखिम भरा था। स्वतंत्र देश के 70 सालों में कोई भी सरकार यह कदम नहीं उठा सकी। बल्कि कोई
सोच भी नहीं सका और न ही कोई विमर्श शुरू किया गया। मोदी सरकार-2 के 100 दिनों में ही अंततः
यह मामला संसद के समक्ष पेश किया गया और बहुमत से पारित किया गया कि 370 अस्थायी
व्यवस्था थी, लिहाजा उसे हटाया जाए। अब वह व्यवस्था हटाई जा चुकी है, तो इस पर राष्ट्रीय सहमति
होनी चाहिए। अनुच्छेद 370 समाप्त करने के साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग
संघशासित क्षेत्रों में बांट दिया गया है। कश्मीरी और कुछ कांग्रेस धर्मा छुट भैए इस मुद्दे पर चिल्लाना
बंद करें। दरअसल मोदी सरकार के 100 दिनों में यह अति महत्त्वपूर्ण फैसला है। इसके अलावा, तीन
तलाक कानून को ‘आपराधिक’ बनाना भी ऐतिहासिक फैसला रहा है। नतीजतन मुस्लिम तबके में तीन
तलाक की कुप्रथा अब अतीत बन चुकी है। जो अब भी औरत को तीन तलाक देने पर आमादा हैं और
आदतन बाज नहीं आए हैं, उनके लिए जेल में ही जगह है। क्या सरकार के 100 दिनों में ऐसे फैसलों की
अपेक्षा की जाती रही है? यदि इन दो फैसलों के आधार पर ही मोदी सरकार का मूल्यांकन किया जाए,
तो सहज ही कह सकते हैं-‘100 दिन चले, कई सौ कोस।’ सरकार ने इसी अंतराल में आतंकवाद रोधी
कानून में संशोधन कर, आतंकवाद के समर्थक व्यक्ति को भी, आतंकी परिभाषित किया है। इस संशोधित
कानून के तहत हाफिज सईद, मसूद अजहर और दाउद इब्राहिम को भारत सरकार ने भी ‘आतंकवादी’
घोषित किया है। वे ‘वैश्विक आतंकी’ तो पहले से ही घोषित हैं। इस कानून के जरिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी
(एनआईए) की भूमिका को ज्यादा सशक्त कर उसका विस्तार किया गया है। बैंकों की सेहत सुधारने के
मद्देनजर कई बैंकों का आपस में विलय कराया गया है, लेकिन इस कवायद से एक भी नौकरी नहीं
जाएगी, यह सार्वजनिक वायदा सरकार का है। इन मुद्दों के अलावा असम में एनआरसी की अंतिम सूची
भी जारी कर दी गई है। कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान को पस्त किया गया है और अंतरराष्ट्रीय
अदालत के फैसले तथा वियना संधि, 1963 से मजबूर होकर पाकिस्तान को भारतीय कैदी कुलभूषण
जाधव को उप-उच्चायुक्त से मुलाकात करने देना पड़ा है। अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद पाकिस्तान भी
बेहद तिलमिलाया, दुनिया के देशों समेत संयुक्त राष्ट्र की चौखट भी खटखटाई, लेकिन लगातार फजीहत
ही हाथ लगी। आज प्रधानमंत्री मोदी की अमरीकी राष्ट्रपति टं्रप, रूस के राष्ट्रपति पुतिन, जापान के
प्रधानमंत्री शिंजो आबे सरीखे नेताओं के साथ भाव-भंगिमा ‘दोस्ताना’ है, दुनिया ने बीते कुछ दिनों के
दौरान इन विश्व नेताओं की अनौपचारिक मुलाकातों के चित्र देखे होंगे। संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन,
मालदीव आदि देशों ने हमारे प्रधानमंत्री को अपने सर्वोच्च सम्मानों से नवाजा है। दरअसल ये 100 दिन
विकास, विश्वास और परिवर्तन के हैं। इसी अंतराल में किसानों की आर्थिक मदद के 6000 रुपए की
प्रक्रिया को नियमित किया गया। असंगठित और छोटे दुकानदारों के लिए पेंशन योजना की शुरुआत की
गई। घर-घर पेयजल पहुंचाने की योजना भी शुरू की गई। उसके लिए अलग मंत्रालय बनाकर 3.5 लाख
करोड़ रुपए का बजट तय किया गया है। उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेंडर की सुविधा लेने वाली
महिलाओं की संख्या भी 8 करोड़ पार कर गई है। इस दौरान 17वीं लोकसभा में करीब 125 फीसदी
ज्यादा काम हुआ है और 36 बिल पारित किए गए हैं। यह भारत के 72 साल के कार्यकाल में एक
कीर्तिमान है। मोदी सरकार के नाम इन 100 दिनों में ही ढेरों उपलब्धियां हैं। कई कमियां भी हैं। चीन से
अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पाने के बावजूद अर्थव्यवस्था में सुस्ती का दौर है। इसे मंदी नहीं कह

सकते, क्योंकि अर्थव्यवस्था की विकास दर ऋणात्मक होने पर ही मंदी कहा जा सकता है। बहरहाल मोदी
सरकार लगातार सक्रिय है और देश के सामने उसकी सरकार काम करती दिख रही है। 100 दिनों की
सकारात्मकता इससे ज्यादा नहीं हो सकती।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *