अर्पित गुप्ता
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने तीन और चार सितम्बर को मालदीव का दौरा किया। वहां उन्होंने चौथी इंडियन ओशन कॉन्फरेन्स (हिन्द महासागर सम्मलेन 2019) में हिस्सा लिया। इस सम्मलेन की शुरुआत 2016 में हुयी थी। मालदीव से पहले इस सम्मलेन की मेज़बानी सिंगापुर, श्रीलंका और वियतनाम कर चुके हैं। हिन्द महासागर सम्मलेन का मालदीव में आयोजित होना भारत और मालदीव के संबंधों को मज़बूती की तरफ ले जाने वाला एक कदम कहा जा सकता है। इससे पहले 1 और 2 सितम्बर को मालदीव में ही दक्षिण एशियाई संसदों के सभापतियों के एक शिखर सम्मलेन (साऊथ एशियन स्पीकर्स समिट) का आयोजन किया गया था। भारत और मालदीव के द्विपक्षीय संबंध रणनीतिक और क्षेत्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण हैं ही लेकिन हाल ही में मालदीव ने कश्मीर मुद्दे पर भारत का समर्थन करने से दोनों देशों के रिश्तों में एक नया पहलू जुड़ गया है।
भारत के लिए रणनीतिक लाभ
नवम्बर 2018 में मालदीव में आम चुनाव हुए। इन चुनावों में सत्तारुढ़ राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को हरा कर इब्राहिम मोहमद सोलीह नए राष्ट्रपति बने। अब्दुल्ला यामीन को चीन का करीबी माना जाता था। उनके कार्यकाल में चीन ने मालदीव में काफी निवेश किया था और मालदीव को विकास के लिए क़र्ज़ भी दिया था। अपनी वन बेल्ट वन रोड परियोजना में चीन के लिए मालदीव एक महत्त्वपूर्ण देश था। हिन्द महासागर में स्थित और भारत के नज़दीक होने के कारण चीन के लिए मालदीव का महत्त्व और भी ज़्यादा था। मालदीव के रूप में चीन को दक्षिण एशिया में पाकिस्तान के बाद एक महत्त्वपूर्ण देश मिला था जिसका उपयोग भारत के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए किया जा सकता था।लेकिन सोलीह के चुनाव जीतने के बाद मालदीव ने अपनी नीति भारत के पक्ष में करने की शुरुआत की। मालदीव ने भारत को अपना सबसे करीबी दोस्त बताया। पिछले लगभग एक साल में भारत और मालदीव के बीच द्विपक्षीय बैठकों में भी बढ़ोतरी हुयी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नवम्बर 2018 में इब्राहिम मोहमद सोलीह के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। राष्ट्रपति बनने के बाद सोलीह ने सबसे पहला विदेश दौरा दिसंबर 2018 में भारत का किया। इसके बाद मई 2019 में दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने जून 2019 में पहले विदेश दौरे के लिए मालदीव को चुना। इस दौरे में मोदी ने मालदीव की संसद को संबोधित किया। मालदीव ने प्रधानमंत्री मोदी को अपने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देकर सम्मानित किया। राष्ट्रपति सोलीह ने चीन के प्रकल्प और क़र्ज़ पर पुनर्विचार करने की भी बात कही है। साथ ही उन्होंने यह भी भरोसा दिया है कि मालदीव की ज़मीन को किसी भी भारत विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा। भारत और मालदीव के मज़बूत होते संबंध भारत के लिए सामरिक तौर पर एक बहुत बड़ा लाभ है।
भारत-मालदीव संबंधों का क्षेत्रीय महत्त्व
दक्षिण एशियाई देशों के क्षेत्रीय सहयोग में भारत-पाकिस्तान विवाद हमेशा से हावी रहा है। सार्क जैसे संगठन के सफल न हो पाने में भारत और पाकिस्तान के बीच के मतभेदों को काफी हद तक ज़िम्मेदार माना गया है। लेकिन पाकिस्तान को छोड़ अन्य पड़ोसी देशों के साथ सक्रिय दृष्टिकोण रखने से क्षेत्रीय स्तर पर भी भारत को फायदा होगा। भारत और मालदीव मिलकर अन्य देशों जैसे- बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और श्रीलंका के साथ क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
कश्मीर मुद्दा
पिछले महीने भारत ने अनुच्छेद 370 और 35A को हटाकर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किया था। इस मुद्दे को पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाकर कश्मीर पर समर्थन मांग रहा है। लेकिन इस विषय पर कई देशों ने भारत का समर्थन किया है। इन देशों में मालदीव भी है। मालदीव ने कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला बताया है। दक्षिण एशियाई सभापतियों के सम्मलेन में भी पाकिस्तान की तरफ से इस मुद्दे को उठाने की कोशिश की गयी। लेकिन मालदीव ने कश्मीर को इस सम्मलेन की कार्यसूची में शामिल करने से इंकार कर दिया। मालदीव का भारत को समर्थन करने का यह भी मतलब है कि पाकिस्तान कश्मीर को इस्लाम से जोड़ने में असफल साबित हो रहा है। इससे पहले सऊदी अरब और यूएई जैसे मुस्लिम देशों ने भी भारत का समर्थन किया है। कश्मीर मुद्दे पर भारत को मालदीव का समर्थन मिलना दोनों देशों के संबंधों को एक नयी दिशा दे सकता है। इब्राहिम मोहमद सोलीह के मालदीव के राष्ट्रपति बनने के बाद से मालदीव के भारत के प्रति रूख में सकारात्मक बदलाव आया है। इस बदलाव से भारत को क्षेत्रीय स्तर पर और हिन्द महासागर क्षेत्र में उभरती हुयी परिस्थितियों का सामना करने में मदद मिलेगी।