मेजर ध्यानचंद की 114वीं जयंती पर विशेष : मरणोपरांत मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न देना एक सच्ची श्रद्धांजलि

asiakhabar.com | August 29, 2019 | 4:20 pm IST
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संयोग गुप्ता

‘आज शिद्दत से करो कोशिश चिराग जलाने की, कौन जाने तुम्हीं से कल रोशन, सारा जहां हो’ किसी
शायर के कहे प्रसिद्ध शेर की उपरोक्त पंक्तियाँ किसी भी व्यक्ति को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के
लिए जोश पैदा करती है। कहते हैं प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती है। मेजर ध्यानचंद ने अपने
शानदार खेल की बदौलत भारत को तीन बार ओलंपिक में गोल्ड मेडल दिलाकर सच साबित कर दिखाया
था। कहा जाता है कि मेजर ध्यानचंद के जैसा हॉकी खिलाड़ी आज तक कोई नहीं है। मेजर ध्यानचंद को
फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन के बराबर माना जाता है।
आज अखंड भारत देश मेजर ध्यानचंद की 114वीं जयंती 29 अगस्त को मना रहा है। ध्यानचंद के प्रति
सम्मान प्रकट करने के लिए उनके जन्मदिन 29 अगस्त को हर वर्ष भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप
में मनाया जाता है। भारत को तीन बार ओलंपिक में गोल्ड मेडल दिलाने वाले ध्यानचंद को आखिर कब
तक भारत रत्न से नजरअंदाज किया जाएगा?
मेजर ध्यानचंद जिन्होंने गुलामी के दौर में खेल के क्षेत्र में देश का नाम दुनिया भर में रोशन किया,
जिसने देश को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई थी, उसी ध्यानचंद को भारत रत्न ना देकर सरकारें बार बार
उन्हें नजरअंदाज कर रही है। सवाल उठता है कि अपने शानदार खेल की बदौलत 1928, 1932 और
1936 में ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतकर भारत को पूरी दुनिया में गौरवान्वित करने वाले मेजर ध्यानचंद
को भारत रत्न के लिए लगातार अनदेखी करना क्या उचित है?
यह ध्यानचंद के साथ मजाक के अतिरिक्त और कुछ नहीं कि तत्कालीन मनमोहन सरकार ने 2011 में
संसद के 82 सदस्यों की मांग ठुकरा दी थी, जिन्होंने 'भारत रत्न' के लिए ध्यानचंद के नाम की
सिफारिश की थी।
भारत रत्न भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है और इस सम्मान की स्थापना 2 जनवरी 1954 में
भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गई थी। अब तक 48 हस्तियों को भारत रत्न
सम्मान दिया जा चुका है। एक वर्ष में अधिकतम तीन व्यक्तियों को ही भारत रत्न दिया जा सकता है।
खिलाड़ियों को 'भारत रत्न' से सम्मानित किये जाने के लिए साल 2013 में ही भारत रत्न के पात्रता के
मानदंड में संशोधन किया गया।
24 साल के करियर के बाद सचिन तेंडुलकर को मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम पर 16 नबंवर 2013 में
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद तत्कालीन मनमोहन की यूपीए सरकार ने सचिन तेंडुलकर की लोकप्रियता
को भुनाने के लिए भारत रत्न देने की सारी औपचारिकता महज 24 घंटों में पूरी कर ली थी। तेंदुलकर
और सीएनआर राव को भारत रत्न देने के साथ साथ ध्यानचंद को भी भारत रत्न दिया जा सकता था
परन्तु कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया।

जदयू नेता शिवानंद तिवारी ने सचिन को भारत रत्न देने की घोषणा पर सवालिया निशान लगाते हुए
कहा था कि ध्यानचंद को यह पुरस्कार देने की घोषणा क्यों नहीं की गई जबकि उनकी उपलब्धियां कहीं
ज्यादा है। दरअसल ऐसा करके भारत रत्न को ही मजाक बना दिया गया है। अब इस पुरस्कार का कोई
महत्व नहीं रह गया है। सचिन तेंदुलकर ने कोई मुफ्त में क्रिकेट नहीं खेला है। उन्होंने इसी खेल से
हजारों करोड़ों रुपये कमाएं हैं।'
हॉकी के पूर्व ओलंपियन असलम शेर खान कह चुके हैं कि खेलों में सबसे पहले हॉकी और हॉकी में भी
सबसे पहले ध्यानचंद को यह पुरस्कार मिलना चाहिये था। उन्होंने कहा था,‘‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस
खेल ने आजादी से पहले और बाद में भी भारत को पहचान दिलाई, उसे और उसके सबसे बड़े खिलाड़ी
को इस सम्मान के काबिल नहीं समझा जा रहा है। सरकार कोई भी हो, उन्हें यह सम्मान नहीं दे रही
है।’’
1936 का बर्लिन में हॉकी ओलिंपिक का फाइनल मैच भारत और जर्मनी के बीच चल रहा था। जर्मन
तानाशाह हिटलर भी मैच देख रहे थे। भारत ने उस मैच में जर्मनी को 8-1 से रौंद डाला। मैच खत्म होने
के बाद हिटलर ने ध्यानचंद के खेल से प्रभावित होकर जर्मनी की नागरिकता के साथ जर्मन सेना में
कर्नल बनाने तक प्रस्ताव दे दिया हालांकि ध्यानचंद ने इस प्रस्ताव को बड़ी विनम्रता के साथ यह कहकर
इसे ठुकरा दिया, ''मैंने भारत का नमक खाया है, मैं भारत के लिए ही खेलूंगा।
70वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर नरेंद्र मोदी सरकार ने भूपेन हजारिका, नानाजी देशमुख और
कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा की
थी। भारत रत्न देने पर आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने ट्वीट में लिखा था,
'भाजपा की भारत रत्न योजना 'एक बार संघ की शाखा में जाओ भारत का रत्न बन जाओ' मज़ाक़ बना
दिया भारत रत्न का।'
ध्यानचंद ने तीन ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया और तीनों बार देश को स्वर्ण पदक
दिलाया। भारत रत्न के लिए ध्यानचंद के नाम की अनुशंसा यूपीए सरकार में खेलमंत्री रहे अजय माकन
और भाजपा सरकार में खेलमंत्री रहे विजय गोयल ने 2017 में की थी।
पिछले काफी लंबे समय से पद्मभूषण से सम्मानित मेजर ध्यानचंद जी को भारत रत्न दिलाने को लेकर
कई बार अलग-अलग स्तर पर मांग उठती रही है, लेकिन कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों ही पार्टियों के
प्रधानमंत्रियों ने ध्यानचंद को भारत रत्न देने से अनदेखी करते आ रहे है जोकि दुर्भाग्यपूर्ण है। कोसली से
वाया धारौली होकर झज्जर से दिल्ली जाने वाली हरियाणा रोडवेज की बस में यात्रा करते हुए कल 28
अगस्त, 2019 को मैने (युद्धवीर सिंह लांबा धारौली, झज्जर) देश के लिए अमूल्य योगदान देने वाले
मेजर ध्यानचंद के लिए भारत रत्न के संदर्भ में दो पंक्तियाँ लिखी है :
मनमोहन की तरह प्रधानमंत्री मोदी भी ना करें मेजर ध्यानचंद से किनारा, मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न
दे क्यूँकि 'मोदी है तो मुमकिन है' अब तो मोदी सरकार है दुबारा। एक समय गुजरात के मुख्यमंत्री रहते
हुए नरेंद्र मोदी ने भी ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग की थी लेकिन आज मोदी की दुबारा सरकार
बन चुकी है फिर भी ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने में देरी होना दुर्भाग्य की बात है। यह कैसी
विडंबना है कि मोदी सरकार साल 2016, 2017 और 2018 में किसी भी नागरिक को भारत रत्न देना
तक भूल गए है।

मोदी सरकार ने दिसंबर 2014 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मदन मोहन मालवीय को
भारत रत्न देने की घोषणा की थी। अटल और मालवीय के साथ साथ ध्यानचंद को भी भारत रत्न दिया
जा सकता था परन्तु मोदी सरकार ने ऐसा नहीं किया।
प्रधानमंत्री मोदी 'मन की बात कार्यक्रम' में ध्यानचंद के जन्मदिन 29 अगस्त का जिक्र खेल दिवस के
रूप में करने के साथ उनके हॉकी के कारनामों का जिक्र कर बराबर कर रहे हैं। 'मोदी है तो मुमकिन है'
को ध्यान में रखते हुए मेरा (युद्धवीर सिंह लांबा) प्रधानमंत्री मोदी से अनुरोध हूँ कि अभी तक उपेक्षा के
चलते मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न अवार्ड नही दिया गया है अब जल्द से जल्द उन्हें भारत रत्न से
सम्मानित किया जाए, मेजर ध्यानचंद को मरणोपरांत भारत रत्न देना एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी।


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