ब्यूरोक्रेट के इस्तीफे से उपजे सवाल, राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी एक वजह

asiakhabar.com | August 29, 2019 | 4:16 pm IST
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अर्पित गुप्ता

आजादी के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा देश में सबसे सम्मानित सेवा माना जाता रहा है। आईएएस
और आईपीएस अधिकारी रिटायर होने के बाद राजनीति में आते रहे हैं। नौकरी के दौरान राजनीति की
बारीकियों को वे जाने लेते थे। जिससे राजनीति में उनका कामयाब होना आसान हो जाता था। लेकिन
इधर कुछ दशक से यह पुराना ट्रेंड बदलने लगा है। राजनेताओं की सिपासलार बनकर काम करने वाले
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को राजनीति इतनी रास आने लगी की उन्हें नौकरी छोड़ने से भी
परहेज नहीं रह गया है।
जी. कन्नन
2018 में केरल में आयी बाढ़ के समय राहत कार्यों में मदद करने वाले 2012 बैच के आईएएस अधिकरी
जी. कन्नन ने इस्तीफा दे दिया। केरल निवासी कन्नन इन दिनों केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर
हवेली में तैनात थे। केरल कैडर के आईएएस अफसर कन्नन गोपीनाथन ने कश्मीर में 'मौलिक अधिकारों
के हनन' के खिलाफ विरोध दर्ज कराते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। गोपीनाथन ने कहा कि वो
अपनी तरह से जीना चाहते हैं, भले ये एक दिन के लिए ही क्यों न हो। उन्होंने अपने कंधे पर राहत
सामग्री रखकर लोगों तक पहुंचाई थी। उनके इस काम की देशभर में सराहना की गई थी। कश्मीर में
"अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन" के खिलाफ अपने विचार प्रकट करने के लिये कन्नन ने नौकरी से
इस्तीफे का दावा किया है। कन्नन ने कहा कि यदि आप मुझसे पूछे कि वह क्या कर रहे हैं तो जब
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में से एक देश पूरे राज्य पर प्रतिबंधों का ऐलान कर दे और यहां तक लोगों
के मूलभूत अधिकारों का भी उल्लंघन करें तो ऐसे में कम से कम उन्हें जवाब देने में समक्ष होना चाहिए
कि वह अपनी नौकरी छोड़ रहे हैं।
शाह फैसल
कुछ दिन पहले चर्चित आईएएस अधिकारी शाह फैसल ने भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया
है। जम्मू कश्मीर के निवासी और साल 2010 बैच के आईएएस टॉपर शाह फैसल ने राजनीति में उतरने
का फैसला कर लिया। हलांकि लोगों के मन इस अधिकारी के प्रति इस बात को लेकर सहानुभूति बनी
कि व्यवस्था से परेशान यानी नागरिकों के हित में खुद को सुलभ न कर पाने के कारण उन्होंने इस्तीफा
दिया है। लेकिन इस्तीफा देने के बाद उन्होंने एक राजनीतिक पार्टी की गठन किया और जम्मु कश्मीर

की बागडोर संभालने के लिए प्रयास शुरु किया। धारा 370 हटने के बाद उन्होंने इस पर प्रश्न उठाया और
इसका विरोध किया। फिलहाल वे नजरबंद हैं। प्रश्न ये उठता है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा ज्वाइन
करते वक्त देश की एकता, अखंडता और राष्ट्रीय अस्मिता की शपथ उन्होंने ली होगी और इसका महत्व
बाखूबी वो जानते भी होंगे। क्या जम्मु-कश्मीर से धारा 370 हटाना भारतीय गणराज्य का अधिकार नहीं
है। शाह फैसल निश्चित तौर पर मेहनती, ऊर्जावान और प्रबुद्ध होंगे तभी उन्होंने भारतीय प्रशासनिक
जैसी मुश्किल परीक्षा में प्रथम रैंक प्राप्त किया था। यह जम्मु कश्मीर के युवाओं के आदर्श के रुप में पूरे
देश में प्रसिद्ध हुए थे। सफल होने के बाद किसी व्यक्ति के मन में कितनी आकांक्षाएं और दबी हुई है
यह समझ पाना उनके इस्तीफे से ही पता नहीं चल पाता है। आशाओं के साथ अपनी आकांक्षाएं पूरी
करना और अपने मन मुताबिक कार्य करना किसी का भी अधिकार हो सकता है और उसके लिए कोशिश
करनी भी चाहिए।
फारूक अहमद शाह
2004 बैच के आईएएस अधिकारी वरिष्ठ आईएएस अधिकारी फारूक अहमद शाह ने सरकारी सेवा से
इस्तीफा दे दिया है। जम्मू-कश्मीर में राजनीति में शामिल होने के कयास लगाए जा रहे हैं। उन्होंने सेवा
से इस्तीफा देते हुए कहा था कि वह मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टी या अलगाववादी हुर्रियत कांफ्रेंस में
फिलहाल शामिल नहीं होंगे लेकिन वह आगामी लोकसभा चुनाव लड़कर खुश होंगे। अनुच्छेद 370 को
हटाए जाने के सरकार के फैसले के मद्देनजर कश्मीर के लोगों ने घाटी में हिंसा का नया दौर शुरू होने
की आशंका जताई और कहा कि इससे राज्य की मुस्लिम बहुलता वाली पहचान में बदलाव हो सकता है।
यहां आए श्रीनगर निवासी फारूक अहमद शाह ने कहा, ‘हम फैसले से चकित हैं और इसने हमें निराश
कर दिया है क्योंकि इस अनुच्छेद के साथ हमारी भावनाएं जुड़ी थीं।’
प्रीता हरित
उत्तर प्रदेश हमेशा सुर्खियों में बना रहता है। चाहे वो राजनीति हो, अपराध हो या फिर सत्ता परिवर्तन।
लेकिन इस बार एक अलग ही चर्चा है, वो ये कि यूपी के मेरठ में इनकम टैक्स विभाग की प्रिंसिपल
कमिश्नर प्रीता हरित ने 20 मार्च 2019 को नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया और इसके बाद उन्होंने कांग्रेस
का दामन थाम लिया। महत्वाकांक्षा इतनी प्रबल थी कि इसको देखते हुए आगरा से इन्हें कांग्रेस ने
लोकसभा टिकट भी दे दिया। हरियाणा प्रांत की निवासी प्रीता हरित 1987 बैच की आईआरएस हैं, जो
दलित अधिकारों के लिए लगातार काम करती रही हैं और इसको लेकर चर्चा में भी बनी रही हैं।
अपराजिता सारंगी
बिहार की रहने वाली ओड़िसा बैच की आईएएस अधिकारी अपराजिता सारंगी की, इन्होंने वर्ष 2018 में
अपने पद से इस्तीफा देकर भाजपा के दामन को थाम लिया था। जिन्हें भुवनेश्वर से भाजपा ने लोकसभा
प्रत्याशी बनाया और वो यहां सांसद चुन ली गईं। अपराजिता 1994 बैच की आईएएस हैं। उन्होंने पांच
साल तक केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर रहने के बाद वीआरएस के लिए आवेदन किया था। हलांकि इनके
रिटायर होने में लगभग 11 साल अभी शेष बचे थे।

मणिशंकर अय्यर
1963 में भारतीय विदेश सेवा के लिए चुने गए मणिशंकर अय्यर ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को
देखते हुए वर्ष 1989 में वीआरएस लेकर राजनीति की तरफ मुखातिब हुए और कांग्रेस से जुड़कर कई
अहम पदों पर रहे।
सत्यपाल सिंह
वर्ष 1980 बैच के आईपीएस अधिकारी सत्यपाल सिंह ने वर्ष 2014 में मुंबई पुलिस आयुक्त पद से
इस्तीफा देकर भाजपा के साथ हो लिए थे। इसका उन्हें बड़ा फायदा भी हुआ और यूपी के बागपत से
बतौर भाजपा कैंडिडेट चुनाव जीतकर सदन पहुंचे और आज की तारीख में मानव संसाधन राज्यमंत्री
सत्यपाल सिंह बनकर केंद्रीय राजनीति का हिस्सा बन चुके हैं।
अरविंद केजरीवाल
मैगसेसे अवार्ड से वर्ष 2006 में नवाजे गए और वर्तमान में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल वर्ष
1992 में आईआरएस ज्वाइन किए। कुछ समय गुजरने के उपरांत केजरीवाल में अपने पद से इस्तीफा दे
दिया। इसके बाद आरटीआई एक्टिविस्ट के रुप में काम करने लगे। फिर इनकी कार्यशैली फोक्सड थी सो
दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन हुए।
ओ पी चौधरी
छतीसगढ़ के रायपुर में कलेक्टर पद पर कार्यरत 2005 बैच के आईएएस अधिकारी ओपी चौधरी ने अपने
पद से रिजाइन करते हुए भाजपा का दामन थाम लिया था। इनके बारे में कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ के
पूर्व सीएम रमन सिंह के बहुत नजदीकी रहे हैं। हलांकि इनके लिए नौकरी छोड़कर राजनीति में आना
उतना सार्थक साबित नहीं हुआ। भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर छत्तीसगढ़ के खरसिया विधानसभा
सीट से चौधरी ने चुनाव लड़ा, लेकिन वे इस चुनाव में हार गए।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा में क्वालीफाई करने के बाद सरकार को उनसे
बड़ी उम्मीदें होती हैं। इस लिहाज से वो कार्य को संपादित भी करते हैं। लेकिन ऐसी कौन सी परिस्थिति
है जो इतनी बड़ी नौकरी छोड़कर किसी न किसी बहाने राजनीतिक गलियारे में दस्तक दे रहे हैं। नौकरी
छोड़ने से पहले लाख दलील देते हों मगर उनका आखिरी पड़ाव राजनीति ही देखने को मिलता है।


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