चिदंबरम की गिरफ्तारी

asiakhabar.com | August 24, 2019 | 5:55 pm IST
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अंततः केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई ने पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम को गिरफ्तार कर लिया। उन पर
अपने पद का भ्रष्टाचारी तरीके से दुरुपयोग का आरोप है। इसमें मीडिया की एक बड़ी हस्ती इंद्राणी
मुखर्जी का नाम भी शामिल है जो पहले ही अपनी ही बेटी की हत्या के मामले में जेल में बंद है।
चिदंबरम के पीछे भ्रष्टाचार का यह मामला काफी लंबे अरसे से पड़ा हुआ था, लेकिन सत्ता की ढाल का
कुशलता से प्रयोग करते हुए वे इस फंदे से बचते रहे थे। लेकिन बहुत अरसा पहले बड़े पदों पर बैठे लोगों
के भ्रष्टाचारी आचरण और कृत्यों को बेनकाब करते रहने वाले डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा था कि
चिदंबरम के खिलाफ सबूत इतने पक्के हैं कि अंततः उन्हें जेल जाना ही पड़ेगा।

काफी लंबे समय तक वे बचते रहे लेकिन अंत में स्वामी की भविष्यवाणी ही सच निकली। चिदंबरम और
उनके बेटे कार्ति दोनों ही भ्रष्टाचार के आरोपों में आरोपित हैं। चिदंबरम अपने बेटे को दाएं-बाएं से अपने
पद का दुरुपयोग करते हुए लाभ पहुंचाते रहे और अब दोनों ही कानून के फंदे को लचर लालों से काटने
का प्रयास करते रहे। चिदंबरम की योजना थी कि उन्हें किसी तरह अग्रिम जमानत मिल जाए ताकि यदि
उन्हें पुलिस गिरफ्तार भी कर ले तो उन्हें हवालात या जेल न जाना पड़े।
भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसे हुए व्यक्ति की आधी ताकत जेल में जाते ही समाप्त हो जाती है क्योंकि
उस नेटवर्क से जुड़े दूसरे लोगों को डरलगने लगता है कि यदि इतने शक्तिशाली आका की यह हालत
हो सकती है तो हमारी क्या औकात है। इसलिए वे स्वयं ही बहुत से रहस्य अपने आप उगलने लगते हैं।
इस मामले में भी एक आरोपी इंद्राणी मुखर्जी वायदा मुआफ गवाह बन गई है। चिदंबरम के बहुत से गली
मुहल्लों का ख़ुलासा तो उसी ने किया। चिदम्बरम का मामला इस दूसरे वर्ग में आता है। इस वर्ग के
लोग एक दूसरे को बचाने के लिए एंड़ी चोटी का जोर लगाते हैं, क्योंकि इनमें से जब एक व्यक्ति फंस
जाता है तो उसके चाहने या न चाहने पर भी दूसरों के कारनामे उजागर होने लगते हैं। ऐसे मौकों पर
राजनीतिक एकजुटता ख़ूब देखने में मिलती है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने चिदंबरम को अग्रिम जमानत
नहीं मिली। न्यायालय का कहना था कि प्रथम दृष्ट्या उसके खिलाफ इस प्रकार के सबूत हैं कि पुलिस
द्वारा उनको हिरासत में जांच करना जरूरी है। इससे चिदंबरम के राजनीतिक साथियों में तहलका मचना
अनिवार्य था। कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी, जो उनके वकील भी थे और उनके गाढ़े के साथी
भी, सारा दिन उनके साथ हलकान होते रहे। तुरंत उच्चतम न्यायालय में अग्रिम जमानत हेतु गुहार
लगाई गई। हाय कैंब्रिज की गई कि इस प्रार्थना को आपात याचिका मान कर सुना जाए। अब न्यायाधीशों
की समझ में नहीं आ रहा था कि अग्रिम जमानत की अनेक याचिकाएं आती हैं, इस ही याचिका में खास
क्या है।
यही खास हो सकता था कि चिदंबरम ही खास हैं, इस लिए उनके साथ भी जम्मू-कश्मीर की तरह खास
व्यवहार किया जाए। शायद चिदंबरम और उनके साथी भूल रहे थे कि खास लोगों की खास छतरी आम
जनता की आम हवा में उठ गई थी। दिल्ली के एक न्यायालय ने चिदंबरम को चार दिन के लिए
सीबीआई की हिरासत में रखने की अनुमति दे दी। शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय ने चिदंबरम को
प्रवर्त्तन निदेशालय के मामले में तो राहत दे दी लेकिन सीबीआई के मामले में उन्हें राहत नहीं दी।
सोनिया कांग्रेस का कहना है यह सब राजनीतिक विद्वेष से किया जा रहा है। ताज्जुब है जब किसी आम
आदमी पर केस चलता है तो कहा जाता है कि कानून के हाथ बहुत लंबे हैं और जब चिदंबरम फंसते हैं
तो कहा जाता है यह बदला लिया जा रहा है। वैसे केवल रिकार्ड के लिए ममता बनर्जी ने भी इस
गिरफ्तारी का विरोध किया है। क्यों? यह तो वही जानती होंगी या फिर लालू प्रसाद यादव।


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