विनय गुप्ता
साम्प्रदायिक दुर्भावना का दानव अब गाय के नाम पर होनी वाली हिंसा से आगे निकलकर "राम" के नाम
तक पहुंच गया है। पूरे देश में विभिन्न स्थानों पर ऐसी सैकड़ों घटनाएं हो चुकी हैं और आए दिन हो रही
हैं जहां अधकांशतः मुस्लिम समाज के लोगों को पकड़कर, उनके साथ बदसुलूकी की गई, मार-पीट की
गयी और जबरन जय श्री राम के जयकारे लगवाए गए। ऐसी भी कई घटनाएं हुई हैं जहां ऐसे जयकारे
लगवाते हुए लोगों को पीट पीट कर जान से मार डाला गया। उग्रता व अमानवीयता का यह प्रदर्शन उग्र
हिंदुत्व के नाम पर कुछ मुट्ठी भर असामाजिक तत्वों द्वारा किया जा रहा है। ऐसी घटनाओं से देश का
मुस्लिम समाज जहां स्वयं को असुरक्षित व भयभीत समझने लगा है वहीँ देश के अधिकांश शांतिप्रिय
हिन्दू समाज के लोगों द्वारा भी हिन्दू धर्म तथा देश को बदनामी करने वाली ऐसी हरकतों की हर स्तर
पर निंदा की जा रही है। भगवान राम जैसे आदर्श महापुरुष जिन्हें उनके आदर्श जीवन व उच्च चरित्र के
चलते "मर्यादा पुरुषोत्तम" कहा जाता है, उनके नाम पर हिंसा व साम्प्रदायिकता फैलाने वाले क्या वास्तव
में भगवान राम के बताए हुए रास्ते पर चलते हुए ऐसे घृणित कार्य कर रहे हैं? क्या वास्तव में किसी से
जबरन जय श्री राम के जयकारे लगवाना या मारपीट करना या किसी झुण्ड द्वारा किसी एक व्यक्ति की
धर्म के आधार पर हत्या कर देना भगवान राम की लोकप्रियता उनकी स्वीकार्यता तथा उनकी प्रसिद्धि
बढ़ाने में सहायक है? क्या उनके इस अपराधपूर्ण कृत्य से देश और दुनिया में इन तथाकथित राम भक्तों
की तथा इनके कार्यों से देश की छवि संवर रही है? और सवाल यह भी कि आख़िर यह गिनती के तत्व
हैं कौन, इन्हें शक्ति व प्रेरणा कहां से मिल रही है?
इसमें कोई शक नहीं कि भले ही सत्ताधारियों द्वारा सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास जैसे
नारे देकर लोगों का दिल जीतने की कोशिश की जाती रही है। परन्तु सच्चाई यही है कि अब तक ऐसी
किसी घटना पर देश के ज़िम्मेदारों द्वारा अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी गई। चुप्पी तोड़ना और निंदा करना
अथवा ऐसे तत्वों के विरुद्ध सख़्त कार्रवाई करने का राज्य सरकारों को निर्देश देना तो दूर, उलटे ऐसे
अपराधियों व आरोपियों का महिमांडन किये जाने की कई घटनाएं ज़रूर हो चुकी हैं। सबसे अधिक
घटनाएं अब तक झारखंड राज्य में दर्ज की गयी हैं। जब संसद में प्रधानमंत्री की मौजूदगी में यह कहा
गया कि झारखण्ड मॉब लिंचिंग का अड्डा बन गया है प्रधानमंत्री ने बड़ी चतुराई से इस "झारखण्ड मोब
लिंचिंग का अड्डा" शब्द कहने का भी राजनैतिक लाभ उठाया और कहा की ऐसा कहकर झारखण्ड को
बदनाम किया जाना ठीक नहीं है। उन्होंने यह सोचने की ज़हमत नहीं की कि आख़िर यह शब्द कहे क्यों
जा रहे हैं। उन्हें इस बात की भी चिंता नहीं की ऐसी घटनाओं की चर्चा दुनिया के कई देशों में यहां तक
कि संयुक्त राष्ट्र संघ में भी होने लगी है। आश्चर्य है कि झारखण्ड की बदनामी की चिंता करने वाले
प्रधानमंत्री को पूरे देश की बदनामी की चिंता क्यों नहीं हो रही है? ग़ौर तलब है कि झारखण्ड वही राज्य
है जहां 29 जून 2017 की सुबह रामगढ़ के मनुआ बस्ती निवासी अलीमुद्दीन अंसारी की गौरक्षकों की
भीड़ द्वारा इस लिए पीट पीट कर हत्या कर दी गयी थी कि वह कथित तौर पर प्रतिबंधित मांस लेकर
जा रहा था। अलीमुद्दीन अंसारी को रामगढ़ शहर स्थित बाज़ार टांड़ के पास पकड़ा गया। भीड़ द्वारा
उसकी पिटाई की गई तथा उसकी वैन में आग लगा दी गई। इस घटना से बुरी तरह ज़ख़्मी अलीमुद्दीन
अंसारी की बाद में मौत हो गई। इस मामले में सुनवाई के लिए फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट गठित हुई। 21 मार्च
2018 को रामगढ़ की एक अदालत ने 11 लोगों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी। इनमें भाजपा तथा
हिंदूवादी संगठनों से जुड़े कुछ लोग भी शामिल हैं। इसी मामले में झारखंड हाई कोर्ट ने 29 जून को आठ
अभियुक्तों को ज़मानत पर रिहा किया। ज़मानत पर रिहाई के बाद अलीमुद्दीन अंसारी के हत्यारों को
मोदी मंत्रिमंडल में तत्कालीन मंत्री जयंत सिन्हा द्वारा मालाएं पहना कर सम्मानित किया गया था।
इतना ही नहीं बल्कि अपराधियों के समर्थन में जयंत सिन्हा ने अपनी त्वरित प्रतिक्रिया में अपनी वाल
पर लिखा था कि "रामगढ़ के अलीमुद्दीन हत्याकांड में आठ अभियुक्तों को ज़मानत मिली है। तीन और
अभियुक्तों की सुनवाई होगी। संपूर्ण न्याय के लिए सभी लोग आशावान हैं। अभियुक्त, उनके परिवार के
लोग, हज़ारीबाग़ की जनता न्याय के इस विजय से आनंदित है। संपूर्ण न्याय के लिए पिछले कई महीनों
से समन्वित प्रयास किए जा रहे हैं। दादरी के अख़लाक़ हत्याकांड सहित "ऐसे हत्यारों को मंत्रियों व
सांसदों द्वारा महिमामंडित किये जाने की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं। अब जब इन असमाजिक
तत्वों को मालूम है कि हमारे सैय्यां ही कोतवाल भी हैं फिर इन्हें किस बात का डर और कैसी चिंता।
उलटे इनके हौसले पूरी तरह से बुलंद हैं।
रहा सवाल भारतीय मुसलमानों द्वारा भगवान राम के प्रति आस्था व सम्मान का, तो इस विषय पर इन
लम्पट तथाकथित राम भक्तों द्वारा शायद अध्ययन ही नहीं किया गया है। सारे जहां से अच्छा
हिन्दोस्तां हमारा जैसी अमर नज़्म लिखने वाले महान शायर अल्लामा इक़बाल ने अपनी एक रचना "बांगे
दिरा" में भगवन राम की महानता का उल्लेख बेहद ख़ूबसूरत अंदाज़ में किया है। अल्लामा इक़बाल की
यह नज़्म ‘गागर में सागर‘ का एक बेहतरीन नमूना है। उसी नज़्म का यह शेर "है राम के वजूद पे
हिन्दोस्तां को नाज़। अहले नज़र समझते हैं उसको इमाम ए हिन्द", प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति द्वारा बेहद
पसंद किया जाता है। इस देश में मुग़ल शासकों के अनेक ऐसे फ़रमान आज भी सुरक्षित व उपलब्ध हैं
जिन से पता चलता है कि मुस्लिम शासक भी हिन्दू धर्म के आराध्य देवी देवताओं से प्रार्थना करते थे
तथा पुजारियों से अपनी हिफ़ाज़त व बेहतरी की दुआएं मांगने का निर्देश देते थे। क्या बिना आस्था के
कोई कहीं दुआओं के लिए हाथ फैला सकता है? अब इसी प्रकरण से जुड़ी एक और हक़ीक़त पर ग़ौर
कीजिये। मशहूर फ़िल्म अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी बचपन से उत्तर प्रदेश में अपने गृहनगर बुढाना में
रामलीला में किसी न किसी किरदार के रूप में अभिनय करते आ रहे हैं। पूरे देश में ऐसी हज़ारों राम
लीलाएं होती हैं जहां मुस्लिम लड़के व लड़कियां रामलीला के पात्रों के रूप में अभिनय करते हैं।
नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी भी ऐसे ही रामलीला प्रेमी कलाकारों में एक हैं। रामलीला के प्रति उनके समर्पण का
अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि फ़िल्म जगत की बुलंदियां छूने के बाद भी वे अक्टूबर
2016 में रामलीला में अभिनय करने हेतु विशेष रूप से अपने गांव बुढाना पहुंचे। परन्तु इस बार कुछ
बाहर से आए हुए ऐसे ही उग्र "रामभक्तों" ने नवाज़ को अभिनय करने से सिर्फ़ इसलिए रोक दिया
क्योंकि वह मुसलमान है? इन सिरफिरे रामभक्तों को अयोध्या जाकर देखना चाहिए की भगवन राम और
सीता माता की पोशाकें सिलने वाले अधिकांश लोग मुसलमान हैं। रावण के पुतले मुसलमान कारीगरों
दवरा तैयार किये जाते हैं। गणेश पूजा में मुस्लिम परिवार के लोग गणपति की मूर्तियां स्थापित करते हैं।
यहां तक कि हज़ारों मुस्लिम संगतराश उन देवी देवताओं की मूर्तियों को अपने हाथों से गढ़ते हैं जिनमें
बाद में प्राण प्रतिष्ठा कर भगवान स्वरूप पूजा जाता है। वैष्णव देवी से लेकर अमरनाथ यात्रा तक में
मुसलमानों की क्या भूमिका रहती है यह समस्त श्रद्धालु भली भांति जानते हैं। परन्तु जय श्री राम का
जबरन जयकारा लगवाने वाले इन हक़ीक़तों से या तो बेख़बर हैं या बेख़बर बने रहना चाहते हैं। कोई
इनसे पूछे कि जब आप जय श्री राम का नारा लगवाना चाहते हैं तो नवाज़ुद्दीन को रामलीला में
अभिनय करने से क्यों रोका गया? वह तो जय श्री राम का जयकारा सार्वजनिक रूप से स्वेच्छा से
लगाता आ रहा था?
मेरे विचार से ऐसे लोग विकृत मानसिकता रखने के साथ साथ इस बात से भी आश्वस्त हैं की ऐसी
मानवता विरोधी हरकतों के बावजूद उनका कोई कुछ बिगाड़ने वाला नहीं। ऐसे लोग अपने शासकों की
मंशा व उनके इरादों को समझ चुके हैं। परन्तु सुखद विषय यह है कि देश का अधिकांश हिन्दू समाज
इन बातों को अच्छा नहीं समझता। मैं स्वयं गत 10 वर्षों से लगातार विश्व के सबसे ऊँचे रावण दहन के
आयोजन का सञ्चालन करता आ रहा हूं। मैं गर्व के साथ जय श्री राम और सियापति राम चंद्र की जय
के नारे लगवाता आ रहा हूं। लाखों लोग मेरे साथ स्वर मिलाकर जयकारे भी लगाते हैं तथा मेरे
सञ्चालन को व मेरे विचारों को ग़ौर से सुनते हैं व इसकी प्रशंसा करते हैं। मैं स्वयं श्री राम लीला क्लब,
बराड़ा का संयोजक हूं। मुझे, मेरे क्लब को तथा क्लब के प्रमुख मेरे मित्र तेजिंदर चौहान को इस
उपलब्धि हेतु 5 बार लिम्का रिकार्ड हासिल हो चुका है। आज तक मुझे एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला
जिसे इस आयोजन में मेरी सक्रियता से कोई कष्ट होता हो। बजाए इसके मैं यहां तक कहना चाहूंगा कि
मैं अपने हिन्दू मित्रों के साथ स्वयं को अपनी बिरादरी के लोगों से कहीं ज़्यादा सुरक्षित व सम्मानित
महसूस करता हूं। यही वजह है कि जब कभी मुहर्रम व दशहरा के एक साथ पड़ने के समय शिरकत के
लिए मुझे दो में से किसी एक को चुनना होता है तो मैं मुहर्रम में अपने गृह नगर जाने के बजाए विजय
दशमी में शिरकत करना ज़्यादा ज़रूरी समझता हूं। गत वर्ष भी हरियाणा के राज्यपाल व मुख्यमंत्री की
उपस्थिति में मेरे ही द्वारा विश्व के सबसे ऊंचे रावण दहन के आयोजन का संचालन पंचकुला में किया
गया।
बहरहाल, क्या भगवान राम तो क्या मोहम्मद या ईसा अथवा महावीर या बुद्ध कोई भी महापुरुष किसी
धर्म विशेष की मिलकियत नहीं हैं। ये सब ईश्वर की ओर से मानवता को दी गयी एक ऐसी बेशक़ीमती
सौग़ात हैं जिन्हें पूरी मानवता के लिए आदर्श के रूप में अवतरित किया गया है। किसी भी धर्म का कोई
भी व्यक्ति ख़ास तौर पर हिंसक प्रवृति के लोग इन्हें अपनी बपौती और हिंसा फैलाने का माध्यम
समझने की कोशिश करते हैं तो यह इन महापुरुषों के साथ बड़ा अन्याय है। पूरे मानव समाज को ऐसी
शक्तियों से मिलकर मुक़ाबला करना चाहिए।