विनय गुप्ता
दो-तीन दिन की छुट्टियां बीताकर देर रात को यह सोचकर लौटा था कि मैं तो सरकारी मुलाजिम हूं।
कहीं हड्डी-तोड़ काम पर जाना तो है नहीं। सुबह देर तक सोना है और सफर की थकान मिटाना है।
लेकिन अलसुबह ही फोन घनघना उठा। बॉस का फोन था। मेरी मॉर्निंग खराब होने के बाद भी मेरी गुड
मॉर्निंग का जवाब दिए बिना वे उधर से कह रहे थे कि उन्हें जरूरी काम से बाहर जाना है। और आज
की मीटिंग मुझे लेना है।
एकाएक मैं चैंक उठा। जान हाजिर है, कहने में क्या हर्ज है। यह सभी कहते भी आए है। माना कि यही
परम्परा है। लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि दे ही दो। ऐसी स्थिति में हर सयाना आदमी इसी
तरह सोचता है। यदि न सोचे तो लानत है उसके सयानेपन पर। यदि मैं भी ऐसा सोच रहा हूं तो क्या
गुनाह कर लिया? मैं बड़ी मुश्किल से हां कह पाया था। क्योंकि मैं नया-नया रंगरूट था। इसलिए मेरे रूट
की सारी लाइनें बंद पड़ी थी। इसलिए डर रहा था। अपने संक्षिप्त निर्देश के बाद ही उन्होंने तुरंत फोन
रख दिया था। यह बात बॉस भी जानते थे। इसलिए कि कहीं मैं रोने-गाने न लग जाऊं? अब मैं बड़ी
उलझन में फंस गया था। मुझे बिलकुल समझ में नहीं आ रहा था कि मैं मीटिंग कैसे ले सकूंगा? अब
तक मैंने बैठकें तो कई अटेंड की थी। लेकिन आज तक ली नहीं थी। क्योंकि आज तक मौका ही नहीं
मिला। या यूं कह ले कि मौका ही नहीं दिया। मेरे लिए मुश्किल हो गई। अब क्या होगा? मेरे हाथ-पांव
फूलने लगे थे। सोचा, बॉस को साफ-साफ बता दूं कि मैंने अभी तक मीटिंग नहीं ली है, इसलिए मुझे
मुश्किल होगी। लेकिन कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।
पता नहीं, बॉस को कुछ महसूस हुआ होगा। मेरी परेशानी को भांपते हुए थोड़ी देर बाद ही उन्होंने मुझसे
पूछा था कि कोई परेशानी है क्या? कोई दिक्कत है? मैंने यह सोचकर कि अब मैदान में बिना अस्त्र-
शस्त्र के उतार ही दिया है, जो भी होगा देखा जायेगा, अपनी परेशानी बता दी। बॉस नाराज होकर भी
नाराज नहीं हुए। जो बॉस नाराज न हो, वो बॉस ही कैसा? काहे का बॉस? बॉस की मजबूरी थी। एन
वक्त पर किसे कहा जाए? कही नाराज होने से यह जो घोडा-गधा बिचक गया…बिदक गया तो…किसे
इतनी आसानी बेवकूफ बना कर बिठा कर जाऊंगा। नाराज न होने का उपक्रम करते हुए थोडा दुलारनुमा
नाराज होते हुए बोले, अरे, कैसे अधिकारी हो? ऐसे ही अधिकारी बने फिरते हो? फिर संयत होकर कुछ
पल रुककर बोले, यदि पांच मिनिट में मेरे पास आ सकते हो तो आ जाओ। मीटिंग लेने के मैं कुछ
बेसिक फंडे बता दूंगा। तुम्हें भविष्य में मीटिंग लेने में कभी कोई दिक्कत नहीं होगी।
यह तो छप्पर फाड़कर मिलने वाली कहावत चरितार्थ हो गई। खुदा, खुद पूछ रहा है बन्दे से, बोल तेरी
रजा क्या है? मत चूके चैहान की तरह की तरह लपका भागा। अगले पांच मिनिट में बंदा बॉस के दरबार
में हाजिर। अंदाज यूं कि…भर दे झोली मेरी या मुहम्मद…।
चूंकि बॉस को तुरंत निकलना था। इसलिए बिना किसी औपचारिकता और भूमिका के कहने लगे,
आईएएस अधिकारियों को देखो। सरकार उन्हें कितनी सुविधाएं दे रही है। आलीशान दफ्तर, आलीशान
बंगले। दफ्तर के लिए चमचमाती गाड़ी, और बंगले के लिए चमचमाती अलग गाड़ी। दफ्तर के लिए
अलग दफ्तरी, अर्दली, और बंगले के लिए अलग। सुख-सुविधाओं में पगलाए हुए। ये इतना सब कुछ भोग
भी नहीं पाते हैं, कि सरकार उनकी सुख-सुविधाओं में और इजाफा कर देती है। वे अपना सर पीट लेते हैं
कि ये लो…पहले ही इतना कुछ भोगा नहीं जा रहा है, सरकार ने और सुख-सुविधाएं लाद दी। परेशानी
यह कि अब इनका क्या करें? इतनी सुविधाएं भोगने से फुर्सत मिले तो सरकार पर ध्यान दें। जनता पर
ध्यान दें? देखो, फिर भी जब चाहे वे किसी भी विभाग की, जैसा चाहे वैसी पुंगी बजा देते है। जानते हो
कैसे?
यहां तो मेरी पुंगी बज रही थी। इसलिए दूसरे की पुंगी पर ध्यान नैतिक रूप से मुझे अनुचित लगा। मेरी
गर्दन स्वतः ही नकारात्मक रूप से हिल गई।
अब वे किसी कुशल प्रशासक की तरह बता रहे थे……।
हर विभाग में पचासों तरह की गतिविधियां चलती है। चाहे उपलब्धि के बेहद करीब हो, चाहे उपलब्धियां
शत-प्रतिशत पूर्ण कर ली गई हो, तब भी आप चिंता व्यक्त करे। और कहे कि थोड़े प्रयासों की और
गुंजाईश है। वेल…थोडा और ध्यान देना होगा।
कोई कितना भी अच्छा प्रस्तुत क्यों न कर रहा हो, आप केवल ठीक है..कहते हुए आगे बढ़ते जाएं। आप
उधर बिलकुल न ध्यान दें। आप उसके नेगेटिव पॉइंटस की ओर ध्यान दें। उधर ही सोचें। भले ही आपको
नेगेटिव पॉइंट की रत्तीभर भी गुंजाईश न दिखे, लेकिन आपको किसी तरह से नेगेटिव पॉइंट्स ढूढ़ने होगे।
चाहे वे दो कौड़ी का मूल्य क्यों न रखे? आप उनको लेकर ऐसे गरजे-बरसे कि असमान टूट पड़े। ध्यान
रहे..जो जितना नेगेटिव पॉइंट ढूढता है, उतना सफल नौकरशाह माना जाता है।
आप सोच रहे होंगे, कि इससे तो उनको दिक्कत होगी। वे कहेंगे, जरा इनसे मिलो। पोजिटिव पॉइंट्स की
ओर इनका ध्यान ही नहीं। ताक पर रख दिए। और जिन पॉइंट्स का कोई अर्थ नहीं, कोई मतलब नहीं,
उन्हें लेकर इतनी दंडपेल की जा रही है?
ऐसा आपका सोचना है। बल्कि इसका जादुई इफेक्ट होगा। वे सोचेंगे कि देखो..बंदा बहुत डीप नॉलेज
रखता है। हमनें कभी सोचा भी नहीं कि इनका भी कोई मूल्य होगा, महत्व होगा? वे अपने को यहीं
नाकाम मानेंगे और अफसोस जाहिर करते हुए आपकी गहरी पकड़ और पैठ की दाद देंगे।
आपके सामने टॉप टू बॉटम आंकडे डिस्प्ले होंगे। आपको सिर्फ टॉप तक तक ही रहना है। बॉटम तक
बिलकुल नहीं जाना है। भूलकर भी नहीं। आपको केवल बॉटम वालों को खड़े रखना है। सवाल टॉपवालों से
पूछना है। और देखना है बॉटम वालों की ओर। आपको बोलना है बॉटम वालों को,
लेकिन सुनाना है टॉप वालों को। मतलब आपको येन-केन प्रकारेण टॉप वालों को ही घुड़काना है। टॉप
वालों को ही हडकाना है।
आप सोच रहे होंगे, इससे तो फिर दिक्कत खड़ी हो जाएगी। टॉप वाले सोचेंगे, इतना करने के बाद भी
हम पर ही भौंका जा रहा है। और बॉटम वालो को जरा-सी भी दुत्कार-फटकार तक नहीं?
खुद ही प्रश्न किया, खुद ही उत्तर देने लगे। बोले, ऐसा आपका सोचना है। ऐसा बिल्कुल नहीं होगा। क्यों
कि वे भी जानते हैं कि जो प्रयास कर रहा है, उम्मीदें भी उसी से की जा सकती है। चूंकि उसे मालूम है
कि उससे अपेक्षाएं हैं, इसलिए वह और बेहतर करने की कोशिश करेगा। और बॉटम वाले सोचेंगे कि जब
इतना काम करने वालों का यह हाल है तो हमारा क्या होगा? वे इस चिन्ता में डूब जायेंगे और मन ही
मन संकल्पित होकर कूद पड़ेंगे।
एजेंडे में जो बिंदु शामिल हैं, उन पर कम से कम बात की जाए। उन पर कम से कम चर्चा की जाए।
और ज्यादा समय उन बिन्दुओं पर चर्चा की जाए जो एजेंडे से बाहर की हैं।
आप सोच रहे होंगे, ये क्या बात हुई? ऐसा इसलिए कि आपको एजेंडे कि एबीसीडी भी नहीं मालूम है।
और वे पूरी तैयारी करके आए हैं। सुनो, इससे क्या होगा? इससे यह होगा कि जो आए हैं वे सिर्फ एजेंडे
की तैयारी के गुणा-भाग के हिसाब से आए हैं। एजेंडे के बाहर की चीजें उनके लिए कूड़ा-कर्कट है। और
यही कचरा आपके लिए श्रेष्ठ साबित होगा। एजेंडे से बाहर जितना फेंक सकते हो, फेंकों। क्योंकि वे यहीं
अज्ञानी सिद्ध होंगे, असफल सिद्ध होंगे, और आपकी धमक-धाक जमेगी। क्योंकि यह तो रेत में से तेल
निकालने का हुनर हुआ।
और अंत में आपने जिनको प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जमकर लताड़ा है, उनकी पहचान करनी होगी। यह
आपको सूंघकर पहचानना होगा। उनको पुचकारना होगा। क्योंकि पुचकार ही हिंसक को पालतू बनाती है।
और जो पहले से ही पालतू है, वे निश्चित रूप से वफादार होंगे ही। उनकी चिंता नहीं।
सुनकर मन प्रसन्न हुआ। मैंने उसी गर्दन को….जो केवल रेतने के, या केवल दबाने-घोटने के काम आती
है, बच जाने की खुशी में हिला-हिला कर कहा, समझ गया सर। बस..थोडा और बता दीजिए सर कि, जब
कोई जानकारी लेना चाहे, कोई प्रश्न पूछना चाहे, कोई जिज्ञासा व्यक्त करना चाहे और उसकी हमें कोई
जानकारी न हो, तब क्या किया जाए? क्या कहा जाए?
वे उत्साहित होकर बोले थे कि बस..यही वह अवसर है, जो आपको काबिल साबित करेगा। बस…यह
समझ लीजिये कि आपको अपनी काबिलियत साबित करने का इससे अच्छा अवसर नहीं मिलेगा। अव्वल
तो आपको उस ओर धयान ही नहीं देना है। और देना भी पड़े तो, चैंककर इस अंदाज में देखना है कि
पूछने वाला खुद यह महसूस करे कि कहीं मैंने कोई बचकाना सवाल तो नहीं पूछ लिया है? फिर आप
पूछे कि और किसी को इसके अलावा कुछ पूछना तो नहीं है? यकीन मानो, कोई बेवकूफ हो होगा, जो
सार्वजनिक तौर पर अपने आप को बेवकूफ सिद्ध करेगा। ऐसे खास मौकों-अवसरों के लिए अपनी पोटली
में दो-चार ब्रम्हास्त्र रखा करें ऐसी स्थिति में आप कहे कि, इस तरह की जानकारी या निर्देश, शासन से
हमें प्राप्त नहीं हुए हैं। इन बिन्दुओं पर हमने भी शासन से मार्गदर्शन / निर्दश चाहे हैं। मैं लगातार हॉट
लाइन पर हूं। जैसे ही मिलेंगे, यथासमय शेयर किये जायेंगे। या कहो कि ये पालिसी मेटर है। सरकार
तय करेगी। जब भी तय करे। वे थोडा-सा कन्फ्यूज हैं, आप उन्हें थोडा कन्फ्यूज और कर दें।
लेकिन सर….
वे कुछ बताते कि, अन्दर से बॉस की बॉस…यानी सुपर बॉस ने इशारा किया था। बॉस इशारा समझ गए
थे। कहा, अच्छा, मैं समझता हूं, अब तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी। विजयीभव के भाव से आशीर्वाद देते
हुए मुझे मुक्त करते हुए मुझ जैसे अनाड़ी से मुक्ति पायी।
अब आप ही अंदाजा लगा लीजिये, मीटिंग कैसी रही होगी?
पहले मैं मीटिंग के दो-तीन पहले से ही मीटिंग की तैयारी करता था। जानकारियां संकलित करता, अपडेट
होता, प्रजेंटेंशन बनवाता और फोल्डर तैयार करता था। लेकिन जिस दिन से बॉस से दीक्षित हुआ हूं, उस
दिन से मैं मीटिंग का फोल्डर, मीटिंग प्रारंभ होने के आधा घंटे पहले लेता हूं। यह भी संभव न हो तो
अब फोल्डर की परवाह नहीं पालता। जिसने प्रजेन्ट किया है, वो फसेगा ही। और जिसने न किया, वह तो
पहले से ही फसा है। बचाकर कहां जायेंगे?