विगत दिनों मोदी सरकार ने दावा किया है कि देश में जरुरी दवाओं को सस्ता किया है। उनके अनुसार
गरीब तबके के मरीजों को मंहगी दवाओं से राहत देते हुए दवाओं की कीमत में प्रभावी नियंत्रण के लिए
यह कदम उठाए हैं। रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री मनसुखलाल मंडाविया ने बीते शुक्रवार को राज्यसभा
में बोलते हुए कहा कि करीब 1032 दवाओं की कीमत को नियंत्रण के दायरे में लाया गया है। सामन्य
तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली 1032 आवश्यक में 90 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की गई है।कीमत
नियंत्रण के कारण ही अब जन औषधि केन्द्रों पर मिल रही 526 किस्म की विभिन्न दवायें बाजार कीमत
से 90 प्रतिशत कम कीमत पर उपलब्ध हो रही हैं।
लेकिन क्या दवा सस्ती करने से देश स्वस्थ हो जाएगा। हमारा मानना है कि देश में जिन वजहों से
बीमारियां फैल रही हैं या उनका जन्म हो रहा है उस पर नियंत्रण करना आवश्यक है। हम देश मे हो रही
डेवलेपमेंट पर सवालिया निशान नही उठा रहे लेकिन आज भी लोग ऐसे क्षेत्रों में रह रहे हैं जहां से आप
बिना मुंह पर रुमाल रखकर नही निकल सकते। जरा आप सोचिये वह कितनी गंदगी होगी, और जहां
इतनी गंदगी होगी वहां बीमारी होना तय है। साथ ही बिहार की स्थिति जगजाहिर है। मंत्री जी के ब्यान
में गरीब शब्द बार-बार आ रहा था। यदि गंभीरता दिखानी ही है तो उस सिस्टम पर दिखाइये जिससे
उनको होने वाली समस्यों पर काबू पाया जा सके। इसके सिवाय जो लोग पीडित हैं क्या वाकई यह दवाएं
उनके पास ईमानदारी से पहुंचती है। प्रत्येक जन औषधि केन्द्र से 700 से अधिक दवायें वितरित कराने
की बात कही जिसमें उन्होंने स्वयं ही स्वीकार किया कि दवाओं की मात्रा कम हो सकती है जिस पर इस
प्रक्रिया खुद ही एक सवालिया निशान खडे करवा रही है।
दवाओं के अभाव मरने वालों के सिवाय भूख से मरने वालों पर भी चिंता व्यक्त करने के जरुरत है।
आज भी डिजिटल इंडिया में भूख से मरने वालों की सख्यां कम नही है। केंद्र सराकर के अलावा कई
राज्य सरकारों ने सस्ती थाली देने की बात कही कई दिनों तक चली भी, अधिकतर जगह बंद हो गई
और कुछ जहग चल भी रही है। लेकिन यह सस्ता खाना उतना उन लोगों तक नही पहुंचा जहां पहुंचना
चाहिए। आज जब जनता ने जिस स्तर दोबारा मोदी सरकार को वो जीत दिलवाई जिससे इतिहास बन
गया हो तो अब सरकार का फर्ज है जो इतिहास में उनके के लिए कोई न कर सका अब वो आप कर दें।
ये भरोसा जितना कमाल है आपको उससे कम ही कमाल करना है क्योंकि देश संचालन की सभी मुख्य
चाबियां आपके पास है। स्वास्थ के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ करना बाकी है। किसी रोगी को आईसीयू में
ले जाने के लिए परिजनों को इतनी मशक्क्त करनी पड़ती है मानों कोई किला फतह करना पड़े। इसका
कारण यह है कि पिछली तीन दशकों में जितनी आबादी बढ़ी है उतने अस्पताल व आईसीयू में बढ़ोतरी
नही हुई। उदाहरण के तौर पर दिल्ली की बात करें तो यहां लगभग तीस हजार आदमी पर एक आईसीयू
आता है जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। किसी किसी दलाल के या किसी की सिफारिश मिलना संभव नही है।
लगभग सभी राज्यों की यही स्थिति मिलेगी। हमारे पास दो विकल्प हैं या तो जनसंख्या नियंत्रण कानून
लाया जाए या बढ़ती जनसंख्या के हिसाब से सुविधा बढ़ाई जाए। सरकार की ओऱ से तमाम ऐसे बज़ट हैं
जिससे कई लोगों का भला हो सकता है लेकिन संबंधित विभाग जनता तक उसको पहुंचाने में पूर्णत
विफल सा नजर आता है वहीं दूसरी ओर जनता का जागरुक न होना भी इसका एक कारण है।
दवाइयां प्रकरण में हम रोजाना सरकारी अस्पतालों को लेकर खबरें अखबारों में देखते हैं कि अधिकतर
दवाइयां या तो पहले ही बेच दी जाती हैं या फिर वो किसी दलाल के द्वारा मिलती हैं। मुश्किल ही ऐसा
होता है कि डॉक्टर द्वारा दी गई सभी दवाइयां अस्पताल से प्राप्त हो। सरकार को प्रार्दशिता को लेकर
कुछ अहम कदम उठाने की जरुरत है चूंकि चंद लोग, लाखों लोगों की जिंदगी के सौदागर नही सकते।
स्पष्ट है कि कोई भी सरकार कुछ क्षेत्रों में कोई कमी नही छोडती लेकिन उसका जमीनी स्तर पर कितना
फायदा जनता को मिलता यह सबसे अहम है। चूंकि एक नकारात्मकता एक मिसाल है कि ‘रिश्वत लेते
पकड़े जाओ, रिश्वत लेकर छुट जाओ’ तो देश की मशीनरी के कुछ पुर्जों मतलब कुछ नेता या
अधिकारियों को यह बात भलिभांति पता है जिसके चलते वो गलत काम आराम से कर लेते हैं क्योंकि
सरकारी स्कीम में घपला करने में कभी एक या दो लोगों का काम नही बल्कि पूरी चैन का काम होता
है। इसका समाधान यही है कि जो जनता के हक को मारकर गलत घर भरता है उसको इस स्तर पर या
ऐसा दंडित किया जाए कि कोई दूसरा न सोचे। क्योंकि कोई भी सरकार जनता के पैसे से जनता का
भला करती है इस आधार पर बात स्पष्ट है कि जिसकी मेहनत का पैसा जो वो टैक्स के रुप में सरकार
को देता है, उसके भले या उसकी तरक्की में लगे तो ही एक उज्जवल देश का निर्माण हो सकता है।