नई दिल्ली। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के मोदी कैबिनेट में शामिल होने के बाद
अब यह तय हो गया है कि जल्द ही बीजेपी को नया अध्यक्ष मिलेगा। लेकिन इसके साथ ही यह भी तय
है कि नए अध्यक्ष को एक साथ कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। न सिर्फ आने वाले एक साल में
महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों में पार्टी की परफॉर्मेंस बरकरार रखने की चुनौती होगी बल्कि नए अध्यक्ष
को अमित शाह की कसौटी पर भी कसा जाएगा। हालांकि अभी पार्टी की ओर से कोई जानकारी नहीं दी
गई है लेकिन माना जा रहा है कि फिलहाल नए अध्यक्ष की दौड़ में जेपी नड्डा और भूपेंद्र यादव का
नाम सबसे आगे चल रहा है।
बीजेपी सूत्रों का कहना है कि अमित शाह के मंत्री बनने के बाद अब पार्टी अध्यक्ष की दौड़ में जेपी नड्डा
और भूपेंद्र यादव का नाम सबसे आगे है। ये दोनों ही नेता, न सिर्फ अमित शाह बल्कि मोदी के भी
नजदीक माने जाते हैं और दोनों को ही संगठन का अनुभव है। नड्डा तो संसदीय बोर्ड के सचिव भी हैं,
जबकि यादव पार्टी महासचिव के रूप में लंबे वक्त से कार्य कर रहे हैं। माना जा रहा है कि नड्डा को
शाह की जगह अध्यक्ष बनाया जा सकता है।
हालांकि पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह जरूरी नहीं कि कैबिनेट के गठन के फौरन बाद ही शाह की
जगह नया अध्यक्ष बनाया जाए। 2014 में भी राजनाथ सिंह के गृहमंत्री बनने के कुछ माह बाद ही
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अमित शाह को नया अध्यक्ष चुना गया था। इस बार स्थिति कुछ
इसलिए बदली हुई है क्योंकि शाह का टर्म पूरा हो चुका है और लोकसभा चुनाव की वजह से ही संगठन
के नए चुनाव टालकर शाह को बतौर अध्यक्ष एक्सटेंशन दिया गया था।
इस साल तीन राज्यों में चुनाव
बीजेपी का जो भी नया अध्यक्ष होगा, उसके सामने चुनौतियों का अंबार होगा। सबसे पहले तो नए
अध्यक्ष पर इसी साल होने वाले तीन राज्यों महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में चुनाव होने हैं। इन तीनों
ही राज्यों में बीजेपी की सरकार है और नए अध्यक्ष के सामने इन राज्यों में पार्टी की पिछली परफॉर्मेंस
को बनाए रखने का दबाव होगा। इसके बाद अगले साल फरवरी में दिल्ली में भी विधानसभा के चुनाव हैं,
जहां पिछली बार बीजेपी को 70 में से महज 3 सीटें ही मिल पाई थीं। ऐसे में दिल्ली में भी पार्टी अपना
प्रदर्शन जरूर सुधारना चाहेगी। अमित शाह ने पार्टी में अपने कामकाज से जो नए मानदंड स्थापित किए
हैं उनसे अब नए अध्यक्ष की तुलना होना लाजमी ही है।