तंबाकू निषेध दिवस की अर्थहीन तस्वीर से झूझता भारत

asiakhabar.com | May 31, 2019 | 4:24 pm IST
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हर वर्ष 31 मई को तंबाकू निषेध दिवस के रुप में मनाया जाता है। डबल्यूएचओ के सदस्य राज्यों के
द्वारा वर्ष 1987 में विश्व तंबाकू निषेध दिवस के रुप में इस दिवस की स्थापना की थी। लेकिन आज
इस दिवस के मायने शून्य बराबर दिखते हैं क्योंकि आईएएनएस के अनुसार आंकड़े बताते हैं कि देशभर
में करीब 2739 लोग तंबाकू व अन्य धूम्रपान उत्पादों के कारण कैंसर व अन्य बीमारियों से हर रोज दम
तोड़ देते हैं। वहीं मध्यप्रदेश में यह आंकड़ा करीब 350 है। वायस ऑफ टोबेको विक्टिम्स के पैट्रन व
कैंसर सर्जन ने आईएएनएस को बताया कि दुनिया में कार्डियो-वेस्कुलर से होने वाली मौत और अक्षमता
की रोकथाम के लिए तंबाकू पर रोक सबसे कारगर है यदि इस बीमारी का सही समय पर पता चल
जाए। इसके अलावा धूम्रपान से हृदय रोग का खतरा बढ़ता है साथ ही तंबाकू का धुआं रहित रूप भी
समान रूप से हानिकारक है।
ग्लोबल एडल्ट तंबाकू सर्वेक्षण के अनुसार भारत में धुआं रहित तंबाकू का सेवन धूम्रपान से कहीं अधिक
है। वर्तमान में 42.4 फीसदी पुरुष, 14.2 फीसदी महिलाएं और सभी वयस्कों में 28.8 फीसदी धूम्रपान
करते हैं या फिर धुआं रहित तम्बाकू का उपयोग करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक इस समय 19 फीसदी
पुरुष, 2 फीसदी महिलाएं और 10.7 फीसदी वयस्क धूम्रपान करते हैं, जबकि 29.6 फीसदी पुरुष, 12.8
फीसदी महिलाएं और 21.4 फीसदी वयस्क धुआं रहित तंबाकू का उपयोग करते हैं। 19.9 करोड़ लोग
धुआं रहित तंबाकू का उपयोग करते हैं जिनकी संख्या सिगरेट या बीड़ी का उपयोग करने वाले 10 करोड़
लोगों से कहीं अधिक हैं।
नशा आज सभी के लिए एक स्टेट्स सिंबल बन गया। इसकी प्रारंभिकता बचपन से ही हो जाती है।
आसानी से प्राप्त होने के कारण स्कूली बच्चे भी इसका सेवन कर लेते हैं। जैसा कि हर बीडी-सिगरेट की
दुकान पर लिखा होता है कि ‘18 वर्ष से कम आयु के बच्चे को तंबाकू बेचना दंडनीय अपराध है’ बावजूद
इसके हर दुकान पर खुलेआम इस कानून की धज्जियां उड़ती हैं। इतना ही बल्कि हिन्दुस्तान में 78
प्रतिशत से ज्यादा दुकानें पटरी-खोके के रुप में अवैध रुप से चल रही है। आज के परिवेश में खासतौर
युवा नशे को पर्सनेलिटी में देखने लगे। कॉलेज में पढ़ रहे बच्चे को लगातार इस ओऱ बढ़ना बेहद गंभीर
मुद्दा बनता जा रहा है। अक्सर देखा जा रहा है कि कम आयु में इतनी मौतें हो रही हैं जिससे रोजाना
न जाने कितने घरों के चिराग बुझ जाते हैं और वो मां-बाप जीते जी मर जाते हैं जिनको इस दुर्दशा से
गुजरना पड़ता है। नशे के पदार्थों को बेचने के तमाम ऐसे मानक हैं जिससे इसकी ब्रिक्री में काफी
गिरावत आ सकती है लेकिन प्रशासन से सेटिंग करके यह हर जगह आसानी से उपल्बध है।
हमें इस पर नियंत्रण करने के लिए बच्चों को दिए पैसो पर निगरानी रखने की भी आवश्कता है क्योंकि
यह बात तय है जब भी किसी के पास उसकी जरुरत से ज्यादा पैसा आता है तो वह सबसे पहले नशे की

ओऱ जाता है। इसके अलावा सरकार को भी एक्शन में आने की जरुरत है। यदि सरकार की इच्छाशक्ति
हो तो जनता का सुधरना निश्चित तौर पर मजबूरी हो जाती है। इसका सजीव उदाहरण बिहार में देखने
को मिला था। बिहार में विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करते ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार में राज्य में
शराब पर प्रतिबंध लगा दिया था जिस वजह से शराब से होने वाली मौतों व रोजाना होने वाले घरानें मे
लड़ाई झगडों में बड़े स्तर पर गिरावट आई थी। इसी तर्ज पर तंबाकू पर प्रतिबंध लगाने की जरुरत है वो
भी पूरे भारत में। लोगों को लुभाने के लिए रोजाना नए तरीके के सिगरटें मार्किट में आ रही हैं जिससे
युवा प्रभावित हो जाते हैं। पिछले दो दशकों में महिलाओं ने भी इस क्षेत्र में बढ़ोतरी की है। इस वजह से
महानगरों में दस मे से एक लड़की को मां बनने में समस्या आ रही है। दुनिया में सबसे ज्यादा दुख
किसी को तब होता है जब उसे पता चले कि वो माता पिता नही बनने का सुख प्राप्त नही कर सकते।
और अब यह समस्या अधिकतर लोगों को घेरने लगी।
इस लेख के माध्यम में से हम सरकार से अपील करते हैं कि आसानी से तंबाकू बिकने पर गंभीरता
दिखाएं और जो लोग इसका कानून तोड़ते हैं उन पर इस तरह के कड़े कानून बनाकर कार्यवाही की जाए
जिससे कोई भी इससे संबंधित कानून तोड़ने की न सोचें। जैसा कि हम कहीं भी देख सकते हैं स्कूल व
कॉलेजों के आस पास नशे के पदार्थों की दुकानें देखने को मिलती है जबकि कानून के तहत यह दुकानें
कुछ जगहों पर नही होनी चाहिए या यूं कहें कि वहां से कुछ दूरी पर होनी चाहिए।
साथ ही बात स्पष्ट है कि इंसान को सुधरना तो स्वयं ही पडता है क्योंकि जब तक आपके अंदर किसी
भी बात की इच्छाशक्ति नही होगी तब तक आप कुछ नही कर सकते। तंबाकू से स्वयं बचें व अपने
आस पास की दुनिया को भी इससे बचने के लिए प्रेरित करें।


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