कोई बोले राम-राम कोई खुदा-ए…

asiakhabar.com | May 30, 2019 | 5:11 pm IST
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महान सूफी संत गुरूनानक देव जी महाराज के यह पावन शब्द मानवता के पक्षधर लोगों द्वारा पूरे विश्व
में स्मरण किए जाते हैं जिसमें आप फरमाते हैं कोई बोले राम-राम कोई खुदा ए -कारण करन करीम-
कृपा धारे रहीम। कोई सेवे गोसईयां-कोई अल्लाह ए। कोई नहावे तीर्थ-कोई हज जाए। कोई करे पूजा-कोई
सिर नवाए।। कोई पढ़े वेद-कोई कतैब। कोई ओढ़े नील-कोई सफदे। कोई कोई कहे तुर्क-कोई कहे हिंदू।
गुरू नानक देव जी की यह पावन वाणी साफतौर पर भारतीयता के उस दर्शन को प्रमाणित करती है
जिसके अंतर्गत् भारतवर्ष को विभिन्नता में एकता रखने वाला एक अनूठा देश स्वीकार किया जाता है।
उपरोक्त शब्द यह भी प्रमाणित करते हैं कि अलग-अलग मान्यताओं तथा विश्वासों के बावजूद मानव
जाति एक ही है तथा सभी में ईश्वर, अल्लाह या राम का वास है। परंतु गत् कुछ वर्षों से नानक की इसी
धरती पर ऐसा महसूस किया जाने लगा है कि कुछ सांप्रदायिक शक्तियों को शायद नानक देव जी के यह
वचन फूटी आंख नहीं भा रहे। मानवता के ऐसे दुश्मन अनेकता में एकता रखने वाले भारत को पसंद नहीं
करते। वे बहुरंगी, बहुरूपी तथा बहुविश्वासी भारत के बजाए एकरूप, एक रंग तथा एक ही विचार के
भारत के निर्माण में लगे हुए हैं। परंतु अफसोस की बात तो यह है कि ऐसे असामाजिक तत्व जो स्वयं
को हिंदू धर्म का योद्धा बताते हैं वे लोगों से जबरन जय श्री राम का उद्घोष करवाना चाहते हैं। उस
मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम का उद्घोष जिसने स्वयं अपने जीवन में कभी भी इस प्रकार की अमानवीय
गतिविधियों को न तो संरक्षण दिया न ही ऐसी हरकतों के पक्षधर रहे। हां कहा जा सकता है कि ऐसे गुंडे
व शरारती तत्व गुरू नानक देव के वचनों के ही नहीं बल्कि हिंदू धर्म तथा भगवान श्री राम के आदर्शों के
भी घोर विरोधी तथा दुश्मन हैं।
पिछले दिनों लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के चंद दिनों के भीतर ही देश के विभिन्न शहरों से इस
प्रकार की अलग-अलग कई घटनाएं सामने आईं जिनसे यह पता चला कि किस प्रकार धर्म के नाम पर
सरेआम गुंडागर्दी करने वाले असामाजिक तत्वों द्वारा केवल मुसलमानों ही नहीं बल्कि हिंदुओं से भी
ज़बरदस्ती जय श्री राम का नारा लगवाया गया। खबरों के अनुसार 26 मई को पुणे के प्रसिद्ध डाक्टर
तथा लेखक डा० अरूण गद्रे को प्रात:काल दिल्ली में कनॉट प्लेस के निकट प्रसिद्ध हनुमान मंदिर के
पास 5-6 युवकों ने रोका। डा० अरूण का धर्म पूछा तथा बाद में जय श्री राम का नारा लगाने के लिए
बाध्य किया। एक दूसरी घटना उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान मथुरा के गोवर्धन क्षेत्र की है जहां
लातविया देश के नागरिक जेमित्रिज पर एक उत्पाती युवक ने चाकुओं से हमला कर घायल कर दिया।
विदेशी श्रद्धालु जेमित्रिज, गोवर्धन क्षेत्र के राधा कुंड स्थित खजूर घाट पर बैठकर प्रतिदिन भजन व
ध्यान करते हैं। खबरों के अनुसार एक युवक ने इस विदेशी तीर्थ यात्री को राम-राम कहा जिसका किसी
कारणवश वह विदेशी पर्यट्क जवाब नहीं दे सका। बताया जाता है कि इसी बात से झल्ला कर ऋषि
नामक युवक ने उस विदेशी व्यक्ति की गर्दन पर चाकू से हमला कर दिया।

इसी प्रकार की एक और घटना पिछले दिनों मीडिया में सुर्खियाँ बटोरने में उस समय कामयाब हुई जबकि
दिल्ली के नवनिर्वाचित सांसद तथा पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी गौतम गंभीर को घटना में स्वयं को भी शामिल
करना पड़ा। गौरतलब है कि गुरूग्राम में 25 वर्षीय मोह मद बरकत आलम गत् 25 मई को सायंकाल
नमाज़ पढ़कर वापस लौट रहा था उस समय चार-पांच उपद्रवियों ने उसे घेर लिया। उसे अपने सिर से
टोपी उतारने के लिए मजबूर किया गया तथा उसकी बुरी तरह पिटाई की गई और उसके सिर पर चाकु
से हमला किया गया। बाद में इन्हीं गुंडों ने बरकत आलम से जय श्री राम का नारा लगाने की जि़द की।
जब उसने इकार किया तो सभी उपद्रवियों ने उसे बेदर्दी के साथ मारना शुरु कर दिया। इस घटना ने
युवा सांसद गौतम गंभीर को भी विचलित किया। उन्होंने गुरूग्राम की घटना की खबर सुनते ही एक
ट्वीट कर इस घटना को अपमानजनक घटना बताया तथा पुलिस से इस संबंध में सख्त कार्रवाई कर
उदाहरण पेश करने की अपील की। बिहार के बेगुसराय तथा मध्यप्रदेश के सिवनी से भी कुछ ऐसी ही
खबरें चुनाव परिणाम आने के बाद प्राप्त हुई हैं जिनसे यह पता चलता है कि किस प्रकार अल्पसं यक
समुदाय के लोगों को उनका नाम व धर्म पूछकर उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। जिस प्रकार 23 मई को
चुनाव परिणाम आने के बाद इस प्रकार की धर्म आधारित लक्षित हिंसक घटनाओं की खबरें आनी शुरु
हुई हैं लगभग यही वातावरण विगत् पांच वर्षों के दौरान भी पूरे देश को देखने को मिला जब देश में ऐसी
सैकड़ों घटनाएं दर्ज हुई हैं।
गौरतलब है कि 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने;सबका साथ-सबका विकास का नारा दिया था। परंतु
उस नारे की सार्वजनिक स्वीकार्यता के बावजूद आखिर पिछले पांच वर्ष क्यों इस प्रकार की घटनाओं के
साक्षी रहे? और क्या वजह है कि इस बार जबकि प्रधानमंत्री ने सबका साथ-सबका विकास के साथ
सबका विश्वास जैसे दो अति महत्वपूर्ण शब्द भी जोड़ दिए हैं उसके बावजूद प्रधानमंत्री के पुन: निर्वाचित
होने के चार दिनों के भीतर ही देश के कई स्थानों से संप्रदाय आधारित हिंसा की खबरें क्यों आनी शुरु
हो गईं? एक बार फिर प्रधानमंत्री से सीधे तौर पर वही सवाल पूछे जाने लगे हैं कि जब आप 'सबका
साथ-सबका विकास और सबका विश्वास जैसे लोकलुभावन नारे देशवासियों को मंत्र की तरह देते हैं फिर
आखिर आप ही की पार्टी तथा आप ही की विचारधारा के लोग क्योंकर इन नारों पर अमल नहीं करते?
क्या वजह है कि जब इस प्रकार की हिंसक तथा बर्बर घटनाओं की भाजपा का ही एक युवा सांसद निंदा
तथा आलोचना करता है तो भारतीय जनता पार्टी के ही कई नेता उस सांसद के ही पीछे क्यों पड़ जाते
हैं? जब गौतम गंभीर ने गुड़गांव की घटना को अपमानजनक तथा निंदनीय घटना बताया उस समय
गौतम गंभीर का साथ देने के बजाए मनोज तिवारी जैसे कई नेता गौतम गंभीर को ही सलाह देने लगे
कि वे इस प्रकार की घटनाओं पर प्रतिक्रिया देते समय सतर्क रहें। गंभीर से कहा गया कि हरियाणा की
एक घटना पर ऐसी टिप्पणी करने का क्या फायदा जो भाजपा के विरुद्ध अन्य दलों द्वारा इस्तेमाल की
जा सकती है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा उनकी भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत
दर्ज की है। इन चुनावों में मतदाताओं से क्या बातें की गईं, किन मुद्दों पर वोट मांगे गए तथा चुनावी
राजनीति को किस प्रकार बदरंग किया गया इस बहस में जाने से कुछ हासिल नहीं है। भारतीय मीडिया

ने निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश के अजेय नेता के रूप में पेश करने हेतु योजनाबद्ध
तरीके से एक सफल मिशन चलाया। यह और बात है कि चुनाव के दौरान तथा चुनाव उपरांत विश्व के
प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने अपनी कुछ अलग ही प्रतिक्रियाएं दीं। परंतु सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री
को सबका साथ-सबका विकास और सबका विश्वास जैसे अपने लोकलुभावन नारों को नैतिक आधार पर
चरितार्थ करना चाहिए। प्रधानमंत्री को ऐसी घटनाओं को एक घटना,मामूली घटना, छोटी घटना या देश में
दूरदराज़ में घटने वाली किसी साधारण घटना की संज्ञा देने के बजाए यह सोचना चाहिए कि वास्तव में
उनके कथन या नारों पर अमल क्यों नहीं किया जा रहा? क्या उनकी पार्टी या उनकी विचारधारा के लोग
उनकी बातों को अस्वीकार कर रहे हैं या फिर उन्हें प्रधानमंत्री के इन नारों की वास्तविकता का ज्ञान है?


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