राहुल की ‘आय’ घोषणा कांग्रेस के गरीबी हटाओ नारे की विफलता दर्शाती है

asiakhabar.com | March 26, 2019 | 5:20 pm IST
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1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा जी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था। 48 वर्षों के दो तिहाई समय में उनकी पार्टी ही सत्ता में रही। लेकिन उन्होंने न गरीबी हटाई और न ही ‘गरीबी हटाओ” के नारे को ही छोड़ा। भारत में कांग्रेस पार्टी से ज्यादा किसी भी राजनीतिक दल ने देश को 70 सालों से अधिक समय तक नहीं ठगा है। इसने भारतीयों को कई तरह के नारे तो दिए लेकिन उन्हें लागू करने के लिए बहुत थोड़े ही संसाधन दिए। नेहरू युग में भारत की विकास दर महज 3.5 प्रतिशत थी। जब पूरा विश्व तेज गति से आगे बढ़ रहा था और उदारीकरण को अपना रही थी, तब हमने अपनी अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने का निर्णय किया। इंदिरा जी नारों को अर्थशास्त्र से कहीं ज्यादा बेहतर समझती थीं। मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और गलत नीतियों ने भारत के विकास को अवरुद्ध कर दिया। 1991 में शुरू किए गए आर्थिक सुधार का बड़ा हिस्सा इंदिरा जी की कांग्रेस सरकार की उस गलती को सुधारने में चला गया। 1971 में इंदिरा गाँधी ने अपना ऐतिहासिक नारा “गरीबी हटाओ” दिया था। उनका अर्थशास्त्र उत्पादन बढ़ाने और देश को समृद्ध करने के लिए नहीं था बल्कि गरीबी का पुनर्वितरण करने के लिए था। वे चुनाव दर चुनाव 1971 में किए गए अपने वादे और नारे को लोगों के कल्याण के नाम पर जोड़ती गईं। श्री राजीव गांधी को गरीबी हटाने के लिए ऐतिहासिक मौका मिला। शुरुआत में उन्होंने ऐसा करने की इच्छा भी व्यक्त की। लेकिन उनकी सरकार अप्रिय विवादों में फंस गई जिस कारण कोई महत्वपूर्ण और बड़ा बदलाव नहीं हो सका।

1971 में इंदिरा जी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था। 48 वर्षों के दो तिहाई समय में उनकी पार्टी ही सत्ता में रही। लेकिन उन्होंने न गरीबी हटाई और न ही ‘गरीबी हटाओ’ के नारे को ही छोड़ा। 2004-2014 में यूपीए सरकार ने लोगों को कई तरह के अधिकार दिए लेकिन उन्हें लागू करने के लिए संसाधन नहीं दिया। कांग्रेस पार्टी की सरकार ने आजादी के बाद से लेकर 2014 तक के अपने पूरे कार्यकाल में केवल एक बार 70,000 करोड़ रुपए की बैंक ऋण माफी का एलान किया. इसमें से केवल 52,000 करोड़ रुपए ही कर्ज माफी के लिए आवंटित किए गए और कैग (सीएजी) की रिपोर्ट को माने तो इसका बड़ा हिस्सा दिल्ली के कारोबारियों को ही मिला। मनरेगा एक ग्रामीण योजना थी जिसमें हर साल 40,000 करोड़ रुपए का वादा किया गया था लेकिन कांग्रेस की यूपीए सरकार के दौरान सालाना महज 28,000 से 30,000 करोड़ रुपए ही हुआ।

कांग्रेस अध्यक्ष ने घोषणा की है कि जिनकी प्रति माह आय 12,000 रुपए से कम है, उन्हें इस स्तर तक पहुंचने के लिए 6,000 रुपए तक की एक सब्सिडी दी जाएगी। यह घोषणा इस बात की स्वीकारोक्ति कि न तो इंदिरा जी, ना ही उनके बेटे और न ही उनके उत्तराधिकारियों द्वारा चलाई जा रही यूपीए सरकार ही गरीबी हटाने में सफल हो पाई। ‘गरीबी हटाओ’ नारा दिए जाने के बाद से कांग्रेस और गांधी परिवार ने देश में दो तिहाई समय तक शासन किया। यदि कांग्रेस पार्टी इतने बड़े कालखंड में गरीबी हटाने में असफल रही तो देश अब उन पर क्यों विश्वास करे? अब जबकि इस योजना की डिटेल मालूम पड़ गई है तो कहा जा रहा है कि भुगतान डीबीटी (सीधे बैंक में ट्रांसफर) से होगा। कांग्रेस पार्टी के आंतरिक अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि इससे राजस्व घाटे पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा। इससे ये स्पष्ट नहीं होता कि बिना राजस्व घाटे पर अतिरिक्त बोझ डाले इस योजना के लिए संसाधन कैसे जुटाए जायेंगे।

कर्जमाफी का झांसा

पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी ने कर्ज माफी का वादा किया। ज्यादातर जगहों पर, ये वादे अभी तक अधूरे हैं। इस तरह, कांग्रेस पार्टी के पास बिना संसाधनों के नारों की लंबी विरासत है। कांग्रेस का इतिहास इस तरह की झूठी घोषणाओं से भरा-पड़ा है। कर्नाटक ने अब तक केवल 600 करोड़ रुपये, मध्य प्रदेश ने 3000 करोड़ रुपये और पंजाब ने 500 करोड़ रुपये ही किसानों के कर्जमाफी पर खर्च किए हैं। किसान अभी भी कर्ज माफी का इंतजार कर रहे हैं।

आय सहायता

गांव के भूमिहीन और गरीब, मनरेगा के जरिये आय अर्जित करते हैं। श्रम के लिए न्यूनतम मजदूरी 42 फीसदी बढ़ा दी गई है। आज भी अधिकांश औद्योगिक श्रमिकों को 12,000 रुपये प्रति माह से अधिक का वेतन मिलता है। सातवें वेतन आयोग के बाद सरकार में न्यूनतम प्रारंभिक वेतन 18,000 रुपये प्रति माह है। घर, सड़क, शौचालय, बिजली, रसोई गैस सब्सिडी, फसल बीमा, एमएसपी भुगतान के अलावा भी लघु एवं सीमांत किसानों को आय सहायता मिल रही है।

विपक्ष ने गरीब कल्याण के प्रति समर्पित पहल को ख़त्म करने की कोशिश की

अगर कांग्रेस पार्टी और उनके सहयोगियों को भारत में गरीबों के लिए इतनी ही चिंता है, तो ऐसा क्यों है कि उनके द्वारा शासित राज्य लघु और सीमांत किसानों की सूची को प्रमाणित करने में धीमी गति से आगे बढ़ रहे हैं जो प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की किस्त प्राप्त करने के हकदार हैं? कुछ अन्य कांग्रेस शासित राज्यों के अलावे पश्चिम बंगाल, ओडिशा और दिल्ली जैसे कुछ प्रदेश ‘आयुष्मान भारत’ योजना को लागू क्यों नहीं कर रहे हैं? इन राज्यों के गरीब किसानों का क्या दोष है कि उन्हें प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का लाभ लेने से वंचित किया जा रहा है?

नरेन्द्र मोदी सरकार गरीबों का समर्थन कैसे कर रही है?

पिछले पांच वर्षों में, प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा-नीत राजग सरकार ने बैंकिंग प्रणाली के माध्यम से प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) की शुरुआत की। खाद्य, उर्वरक, केरोसिन के लिए सब्सिडी के अलावे, 55 मंत्रालय डीबीटी के माध्यम से गरीबों को सब्सिडी दे रहे हैं जो कि ‘आधार’ पर आधारित है। कांग्रेस ने संसद में ‘आधार’ का विरोध किया और इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। विडंबना यह है कि वे अब उसी मैकेनिज्म का उपयोग करना चाहते हैं। आधार, डीबीटी या अन्यथा के माध्यम से आज गरीबों को कितना दिया जा रहा है? यदि अन्य सभी भुगतान भी डीबीटी के माध्यम से किए जाएँ, तो कुल राशि कितनी होगी?

साधारण अंकगणित है कि यदि अलग-अलग बैंक पांच करोड़ गरीब परिवारों को सब्सिडी वितरित कर रहे हैं, तो वर्तमान में अधिकतर भुगतान इस माध्यम से किया जा रहा है। यह औसतन 1,06,800 रुपये सालाना है जो कांग्रेस के कांग्रेस के औसतन 72,000 रुपये के मुकाबले कहीं अधिक है जो कांग्रेस पार्टी डीबीटी के माध्यम से वादा कर रही है।

 


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