भारत ने पाकिस्तान को 1996 में दिया गया सर्वाधिक तरजीह वाला देश का दर्जा, सीआरपीएफ़ पर हमले के बाद वापस ले लिया है। इस कदम से भारत ने पाकिस्तान को स्थिति की गंभीरता से अवगत कराया है। उसने बताया है कि यह हर बार की तरह का जवाब नहीं है। इससे पहले भी कई बार इस बात की कोशिश की गयी थी कि भारत इस मान्यता को वापस ले। ऐसा उस समय हमेशा हुआ है जब पाकिस्तान की ओर से भारत में इस तरह की कोई हरकत की गयी है। वह चाहे 2002 में हो या 2008 में। लेकिन ऐसे सभी मौकों पर भारत सरकार ने इस कदम को नहीं उठाया। वैसे यह कार्रवाई कोई मुश्किल इसलिए भी नहीं थी क्योंकि पाकिस्तान ने भारत को ऐसा दर्जा देने से इनकार कर दिया था। इस दर्जे का केवल यह मतलब है कि आप व्यापार में उस देश के साथ कोई भेदभाव नहीं करेंगे, जो बाकी देशों पर लागू होगा वही इस देश पर भी लागू करेंगे। अलग से कोई कर या शुल्क नहीं लगायंगे।
पाकिस्तान ने भारत को यह दर्जा शायद इसलिए नहीं दिया कि यदि पाकिस्तान का समस्त बाज़ार भारत के लिए खोल दिया गया तो पाकिस्तान का स्थानीय उद्योग लड़खड़ा जायेगा। पड़ोसी होने के नाते भारत को वस्तुओं का कम खर्चे में निर्यात करना आसान है। वैसे चीन के साथ पाकिस्तान ने मुक्त व्यापार समझौता कर रखा है जिससे उसके उद्योगों को नुकसान हुआ है। भारत के साथ इस तरह की स्थिति रखने में उसे और अधिक हानि होने की संभावना है। जो हो, चूंकि पाकिस्तान ने भारत को यह दर्जा नहीं दिया इसलिए यदि भारत इसे वापस ले लेता तो कोई आपत्ति नहीं की जा सकती थी। जहां तक व्यापार का सवाल है, गत दस वर्षों से यह व्यापार 2.25 बिलियन डालर पर अटका हुआ है। जबकि विश्व बैंक के अध्धयन के अनुसार, इन दोनों देशों के बीच व्यापार की सम्भावना 37 बिलियन डालर है।
यह दर्जा वापस लेने के साथ ही भारत ने पाकिस्तान से आयातित वस्तुओं पर 200 फीसदी शुल्क लगा दिया है। वर्ष 2016-17 में पकिस्तान का भारत को निर्यात 454 मिलयन डालर था और दोतरफा व्यापार 2 बिलियन डालर था। भारत पाकिस्तान से फल, अखरोट, प्लास्टरिंग सामग्री, सीमेंट, रुई, चमड़ा, इत्यादि आयात करता है। भारत ने पाकिस्तान को 1.8 बिलयन डालर का निर्यात किया था, जिसमें मुख्य रूप से रुई, कार्बनिक रसायन, प्लास्टिक वस्तुएं, हर्बल रंग, इत्यादि हैं। यह तो अधिकृत आंकड़े हैं जो व्यापार वाघा और अन्य सीमा चौकियों से होता है।
लेकिन इसके अलावा अधिकांश व्यापार दुबई के जरिए होता है, जिसका मूल्य 4.71 बिलियन डालर है। विदेश व्यापार के महानिदेशक के अनुसार नवम्बर 2018 के पहले के 46 महीनों में भारत ने पाकिस्तान को 4.87 बिलियन डालर का निर्यात किया और 1.18 बिलियन डालर का आयात। भारत को व्यापार में 3.69 बिलियन डालर का लाभ है।
अकादमी ऑफ़ बिज़नस स्टडीज के अरुण गोयल के अनुसार,यदि पाकिस्तान भी भारत से आयातित माल पर बदला लेने के लिए शुल्क लगा देगा तो यह खाली स्थान चीन भरेगा। आज भी पाकिस्तान का कुल आयात का 31 फीसदी चीन से आता है और भारत से केवल 3.7 फीसदी। विभिन्न दक्षिणी एशियाई देशों के संगठन, जैसे सार्क, सप्ता, साफ्टा, सभी प्रभावित होंगे और उनका विकास रुक जायेगा। सार्क के व्यापार में वृद्धि की दृष्टि से यह कदम विनाशकारी साबित होगा।
ये सब बातें सही हो सकती हैं। इसके अलावा एक अन्य तथ्य पर अभी अधिक ध्यान नहीं दिया गया है जो दूरगामी नज़रिए से अधिक महत्त्वपूर्ण है। वो यह कि भारत की यह कोशिश थी कि वह अफगानिस्तान से भारत में कच्चे माल के आयात के लिए रास्ता खोल सके। नवाज़ शरिफ के समय में जिंदल स्टील की यह कोशिश थी कि उसे अफगानिस्तान से कच्चा लोहा पाकिस्तान के रास्ते लाने की इजाज़त मिल जाये और उसने कई दौरे पाकिस्तान के किये भी थे। दो – तीन वर्ष पूर्व मोदी के अकस्मात लाहौर में उतरने और शरीफ के घर जाकर शादी-ब्याह में भाग लेने इत्यादि को इन सभी प्रयासों के साथ जोड़ कर देखा जा रहा है। अब ये प्रयास बहुत दूर चले गए हैं और फिलहाल केवल अकादमिक होकर रह गए हैं। इस प्रकार के कदम उठाना तो आसान है, लेकिन इन्हें दुबारा चालू करना बहुत मुश्किल है। इस समय जो आपसी व्यापार के विभिन्न रास्ते खुल गये थे, उन्हें खोलने में बहुत वर्ष लग गए थे।
पकिस्तान पर इसका आर्थिक असर तो बहुत नहीं होगा। लेकिन दूरगामी हानि होने से रोका नहीं जा सकता है। यदि पाकिस्तान भी भारत जैसा कोई कदम उठा लेता है, तो उसे भारत से आयातित वस्तुएं पहले से अधिक महंगी मिलेंगी जिससे वहां मूल्यवृद्धि होने की संभावना है। दूसरा, पाकिस्तान चीन के ऊपर और अधिक आश्रित हो जायेगा। चीन के साथ उसकी सौदेबाजी की शक्ति कम हो जायेगी।
कुल मिलकर, भारत ने अपनी तरफ से यह एक सशक्त बयान दिया है कि हानि के बावजूद वह पाकिस्तान का हर मोर्चे पर विरोध करने के लिए तैयार है और करेगा। बहरहाल, दक्षिणी एशिया एक अनिश्चितता की दौर में चला गया है।