नई दिल्ली। ”कृष्णा सोबती ने असल इंसानियत का दायित्व पूरी तरह निभाया। वह परफेक्शनिस्ट थीं। किसी भी चीज को हमेशा बेहतर से बेहतर करना चाहती थी।” यह बातें वरिष्ठ लेखक गिरिराज किशोर ने राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा त्रिवेणी कला संगम में ”हम हशमत की याद में” नामक आयोजित स्मृति सभा कृष्णा सोबती के साथ के अपने अनुभवों को साझा करते हुए कही। कवि और आलोचक अशोक वाजपेयी ने कहा कि कृष्णा सोबती ने एक लेखक का जीवन बड़े दमखम के साथ जिया था। उन्होंने कभी किसी से सिफारिश की और न ही किसी को कोई रियायत दी। उन्होंने आगे कहा कि हमारे बीच अगर ऐसा कोई लेखक हुआ जिसे अपने लेखन पर अभिमान भी था, स्वभिमान भी था और आत्मसमान भी था तो वह केवल कृष्णा सोबती थीं। कृष्णा सोबती की भतीजी बीबा ने कहा, ”वह दृढ़ विश्वासी, हिम्मती, सृजनात्मक एवं हमेशा सचेत रहने वाली औरत थीं। उन्हें बातें करने का बहुत शौक था, वह अपने बचपन के जमाने को अपने बातों के जरिए जीवंत कर देती थीं।” लेखिका गीतांजलि श्री ने अपने विचार रखते हुए कहा, “आते दिनों में हम समझेंगे और समझते रहेंगे कि हमने किन्हें खो दिया है। उनका कहा, उनका लिखा हमेशा रहेगा।” लेखक पुरुषोतम अग्रवाल ने कहा, ”मैं कृष्णा सोबती के व्यक्तित्व और व्यक्तिगत जीवन के बारे उतना ही जानता हूं जितना एक सामान्य पाठक उनके बारे में जान सकता है।” वहीं, लेखक शाजी ज़मां ने कहा कि कृष्णा सोबती में औरों की खूबियों को ढूढ़ने का बड़प्पन था। पत्रकार और लेखक ओम थानवी ने कहा, ”कृष्णा सोबती ने हमेशा ही साहित्य और अपनी तत्कालीन प्रतिक्रिया में रेखा खिचीं हुई थी, जो साफ़ दिखती थी और उनका यह गुण उन्हें एक महान लेखिका का दर्जा देता है।” प्रख्यात लेखक नन्द किशोर आचार्य ने कृष्णा सोबती को याद करते हुए कहा कि कृष्णा सोबती ”कोमलता और दृढता” की प्रतीक थीं। अंत में राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कृष्णा सोबती के साथ के अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा, ”शुरुवाती दौर में उनसे मिलने में डर लगता था, क्योंकि उनसे काफी डाट सुनने को मिलती थी। ‘चन्ना’ उनकी पहली पुस्तक थी, जो उन्हें पहले ही नजर में अच्छी लगी। उन्होंने आगे कहा कि आज के दौर को लेकर बहुत परेशान रहती थी और 2019 के लिए वह काफी आशावादी थी।” सभा की शुरुआत गायिका राधिका चोपड़ा द्वारा कृष्णा सोबती की याद में गायन से हुई। उन्होंने उनकी पसंद की गजलें प्रस्तुत कीं और बताया कि ‘सोबती जी को बेगम अख्तर बहुत पसंद थीं और वे उन्हें सुनते वक्त रो देती थीं।’ कार्यक्रम का संचालन कर रहे लेखक संजीव कुमार ने बताया 90 वर्ष की उम्र के बाद भी उनकी 6 किताबें प्रकाशित हुईं। इससे पता लगता है कि वह दिमागी तौर पर कितनी सजग और रचनात्मक थीं। साथ ही पिछले चार-पांच वर्षों में उन्होंने असहिष्णुता के खिलाफ़ लगातार बयान दिए और सभाओं में भी गईं।