नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को अयोध्या जमीन विवाद मामले की सुनवाई 29 जनवरी तक के लिए टाल दी। न्यायालय ने कहा कि पांच जजों की पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। जस्टिस यू.यूललित ने खुद को इस पीठ से अलग कर लिया है इसलिए इस पीठ का दोबारा गठन होगा। सुनवाई की शुरुआत में ही चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने साफ कर दिया था कि आज केस की सुनवाई शुरू नहीं हो रही है बल्कि आज सुनवाई का शेड्यूल बताएंगे। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि संविधान बेंच का गठन न्यायिक फैसला नहीं, प्रशासनिक फैसला है।
इससे पहले मुस्लिम पक्षों में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ के समक्ष कहा कि 1997 में जस्टिस ललित बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद से संबद्ध एक मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के लिए पेश हुए थे। कल्याण सिंह मौजूदा समय में राजस्थान के राज्यपाल हैं।
उन्होंने पीठ को बताया कि निजी तौर पर उन्हें 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाले मामले की सुनवाई के लिए गठित पीठ में जस्टिस ललित की उपस्थिति से कोई आपत्ति नहीं है। वह बस इस मामले को अदालत के संज्ञान में ला रहे हैं। इसके बाद जस्टिस ललित ने मुख्य न्यायाधीश गोगोई और पीठ के अन्य सदसयों-जस्टिस एस.ए.बोब्डे, जस्टिस एन.वी.रमना, जस्टिस डी.वाई.चंद्रचूड़ से पीठ से जुड़े रहने में अपनी अनिच्छा व्यक्त की।
हिंदू पक्ष की ओर से हरीश साल्वे, तुषार मेहता, रंजीत कुमार, सीएस वैद्यनाथन और पीएस नरसिम्हा शामिल हैं जबकि मुस्लिम पक्ष की ओर से राजीव धवन, राजू रामचंद्रन, वृंदा ग्रोवर शामिल हैं। इस बेंच में पहले केस की सुनवाई कर रही बेंच का कोई भी सदस्य शामिल नहीं है। तत्कालीन चीफ जस्टिस के नेतृत्व में जो बाकी जज थे उनमें जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल थे। लेकिन इस नयी बेंच में कोई शामिल नहीं है।
27 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के फैसले से अयोध्या मसले पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि इस्माइल फारुकी का मस्जिद संबंधी जजमेंट अधिग्रहण से जुड़ा हुआ था। इसलिए इस मसले को बड़ी बेंच को नहीं भेजा जाएगा। जस्टिस अशोक भूषण ने फैसला सुनाया था जो उनके और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा का फैसला था। जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर ने अपने फैसले में कहा था कि इस्माईल फारुकी के फैसले पर पुनर्विचार के लिए बड़ी बेंच को भेजा जाए।
मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने अपने फैसले में कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के नियमों के तहत अपनी प्रशासनिक शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए पीठ का चयन करना उनका अधिकार है। अदालत ने इसके बाद अपनी रजिस्ट्री से अयोध्या मामले में सभी संबंधित सभी रिकॉर्डो पर गौर करके 29 जनवरी तक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा कि इससे जुड़े दस्तावेजों और सामग्री के अनुवाद में कितना समय लगेगा, जो कि फारसी, अरबी उर्दू और गुरमुखी भाषाओं में है।
हिंदू पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कागजातों के प्रबंधन और उनके अनुवाद के लिए रजिस्ट्री की मदद करने की पेशकश की। इस पर गोगोई ने कहा कि वह इस काम को पूरा करने के लिए पूरी तरह से अपनी रजिस्ट्री पर भरोसा करेंगे। सर्वोच्च न्यायालय के महासचिव को 15 दिनों में रिपोर्ट जमा कराने के निर्देश के बाद अदालत ने कहा कि दोबारा गठित पीठ 29 जनवरी को इस मामले की सुनवाई करेगी।